वाम दलों के प्रभाव में नक्सलवाद को मिला खूब मौका, 12 राज्यों में था कब्जा?

आज से दस-बारह साल पहले देश के 12 राज्यों के 165 जिले नक्सलवाद की चपेट में थे। यह समय था यूपीए सरकार के कार्यकाल का जिसमें वामपंथी दल कांग्रेस से मिल कर केंद्रीय सत्ता का संचालन कर रहे थे। चाहे मुख्यधारा के वाम नेता इसे स्वीकार नहीं करते पर वाम दलों के प्रभाव में नक्सलवाद को फलने-फूलने का खूब मौका मिला और इनके खिलाफ कार्रवाइयों में ढिलाई आने लगी। यूपीए सरकार ने इनके खिलाफ वायु सेना के प्रयोग का प्रस्ताव रखा तो वामपंथियों ने इसका विरोध किया। कहने को तो नक्सल प्रभावित इलाकों में केंद्रीय व राज्य के सुरक्षा बलों को भेजा गया पर साधनों के अभाव और कमजोर राजनीतिक इच्छा शक्ति के चलते सुरक्षा बल कुछ अधिक नहीं कर पा रहे थे। यही कारण था कि नक्सली हमलों में अधिकतर नुकसान सुरक्षा बलों को ही होता रहा। मौजूदा सरकार ने इस समस्या को गंभीरता से लिया। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का स्पष्ट आदेश है कि गोरिल्लाओं के साथ गोरिल्ला की तरह लड़ा जाए। मनरेगा को नक्सल प्रभावित इलाकों में प्रभावी ढंग से लागू करने का लाभ यह मिला कि स्थानीय लोगों को रोजगार मिलने लगा और वे नक्सलवाद से दूर होने लगे। छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार ने गरीबों के लिए सस्ता अनाज योजना शुरू की जो घर-घर अनाज पहुंचाने लगी। ग्रेहाऊंड व कोबरा जैसे सुरक्षा बल तैयार किए गए और राज्य पुलिस प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त किया गया। पहले सुरक्षा बलों की कार्रवाई केवल गश्त तक सीमित होती थी और वे आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करके वापस शिविरों में पहुंच जाते थे। इससे नक्सलियों को फिर से खोई हुई जमीन प्राप्त करने और वहां शुरू किए जाने वाले विकास कार्यों को ध्वस्त करने का मौका मिल जाता।

वर्तमान केंद्र सरकार ने सत्ता में आने के बाद रणनीति बदली। अब जिन इलाकों को सुरक्षा बल मुक्त करवाते वे वहीं टिक जाते और वहीं नया शिविर बनाने लगे। इससे स्थानीय लोगों में सरकार के प्रति विश्वास बढ़ा और विकास संबंधी योजनाएं उन तक पहुंचनी शुरू हो गर्इं। सुरक्षा बलों को आधुनिक हथियारों के साथ-साथ नवीनतम तकनीक से लैस किया गया। इससे सुरक्षाकर्मी अपनी बैरकों में बैठे-बैठे पूरे इलाके की निगरानी करने लगे। नक्सल इलाकों में विकास कार्यों को गति दी गई। एनआईए ने आर्थिक नाकाबंदी कर नक्सलियों के धन के स्रोतों पर लगाम लगाई और नोटबंदी ने आर्थिक तौर पर उनकी कमर तोड़ दी।

सबसे अधिक प्रभाव देश-दुनिया से वामपंथी विचारधारा के लगभग लुप्तप्राय: होने का पड़ा और युवाओं का इससे मोहभंग होने लगा। आज हालत यह है कि बहुत कम युवा वामपंथी विचारधारा ग्रहण करते हैं। जेएनयू में जिस तरह वामपंथी दलों से जुड़े विद्यार्थियों ने देश विरोधी नारेबाजी की उसका प्रभाव भी नक्सलवाद के वैचारिक खात्मे के रूप में देखने को मिला। कुल मिला कर सभी प्रयासों का परिणाम यह सामने आया कि 165 में से केवल लगभग तीस जिले अब इस समस्या से ग्रस्त हैं। हाल ही में नक्सलवाद के गढ़ गढ़चिरौली, बस्तर, सुकमा में नक्सलियों का सफाया किया गया और थोक भाव में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है उससे आशा बंधने लगी है कि शीघ्र ही देश इस समस्या से निजात पा लेगा।
’राकेश सैन, वीपीओ रंधावा मसंदा, जालंधर

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