कठघरे में सरकार

हरियाणा सरकार को एक बार फिर उच्च न्यायालय की फटकार सुननी पड़ी। डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को पंचकूला की सीबीआइ अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद फैली हिंसा से नाराज पंजाब एवं हरियाणा हाइकोर्ट ने कहा कि राजनीतिक फायदे के लिए शहर को जल जाने दिया गया। एक सरकार के व्यवहार पर अदालत की इससे कठोर टिप्पणी और क्या हो सकती है! अदालत ने उचित ही, केंद्र को भी नहीं बख्शा। यों कानून-व्यवस्था की कसौटी पर तमाम सरकारों की कुछ-न-कुछ खामी बताई जा सकती है। मगर खट््टर सरकार इस मोर्चे पर जितनी नाकाम दिखी है उसकी मिसाल शायद ही मिले। तीन साल में तीन बार ऐसे हालात बने, लगा जैसे सरकार नाम की कोई चीज ही न हो। पहली बार ऐसा तब हुआ जब एक अन्य ‘आध्यात्मिक गुरु’ रामपाल की गिरफ्तारी के लिए उनके अनुयायियों और पुलिस के बीच चौदह दिनों तक ‘गतिरोध’ चला था। खूब उत्पात हुआ और छह लोग मारे गए। पिछले साल जाट आंदोलन के दौरान हर तरफ हिंसा और उपद्रव का नजारा था, और सरकार कहीं नजर नहीं आ रही थी। बहुत देर से उसे होश आया, और इस अराजकता ने कोई तीस लोगों की बलि ले ली। दोनों बार राज्य सरकार की खूब किरकिरी हुई, पर शायद उसने कोई सबक नहीं सीखा।

पहले से मालूम था कि राम रहीम के खिलाफ फैसला आया तो हालात बिगड़ सकते हैं। फिर भी, राज्य सरकार ने कोताही करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फैसला सुनाए जाने की तारीख घोषित होने के बाद से ही, यानी एक हफ्ते से डेरा समर्थकों का आना लगातार जारी था। धारा 144 लागू किए जाने के बाद भी उन्हें नहीं रोका गया। दो तरह के प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किए गए। एक में बिना हथियार के जाने की इजाजत थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट की फटकार लगने पर प्रतिबंधात्मक आदेश को संशोधित किया गया। लेकिन हजारों डेरा समर्थक हथियारों से लैस कैसे थे? उच्च न्यायालय ने प्रदर्शनकारियों को हटाने को कहा, तो उस पर अमल करने का दिखावा भर किया गया। एक-दो जगह पुलिस अधिकारियों ने मीडियाकर्मियों के सामने डेरा समर्थकों से अपील कर दी कि वे चुपचाप अपने घरों को लौट जाएं। आखिर इतनी नरमी किसलिए बरती जा रही थी? क्या इसलिए कि राम रहीम ने हरियाणा के पिछले विधानसभा चुनाव में अपने अनुयायियों से भाजपा को वोट देने की अपील की थी, और खट्टर सरकार डर रही थी कि सख्ती बरतने पर उसे सियासी नुकसान उठाना पड़ सकता है?

गौरतलब है कि हरियाणा में भाजपा के सत्ता में आने पर उसके एक तिहाई से ज्यादा विधायक, जिनमें से कई मंत्री भी हैं, आभार जताने के लिए डेरा पहुंचे थे। राम रहीम को सजा सुनाए जाने के बाद जहां तमाम राजनीतिक खामोश हैं, वहीं भाजपा के सांसद साक्षी महाराज खुलकर राम रहीम के बचाव में आ गए। फिर, सुब्रमण्यम स्वामी भी पीछे नहीं रहे। लेकिन अकेले भाजपा को ही क्यों दोष दें। कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल और अकाली दल जैसी दूसरी पार्टियां भी डेरा समर्थकों के वोट पाने की गरज से राम रहीम के आगे नतमस्तक हो चुकी हैं। राजनीति की इस कमजोरी, धर्म के नाम पर होने वाली गिरोहबंदी और समाज में अवैज्ञानिक सोच के फैलाव ने तथाकथित संतों और तथाकथित बाबाओं को इतना ताकतवर बना दिया है कि वे कानून तक की परवाह नहीं करते। यह हमारे लोकतंत्र के लिए एक बेहद चिंताजनक संकेत है।

 

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