लालू का खौफ

लालू का खौफ

नीकु जता तो यही रहे हैं कि लालू प्रसाद से अलग होने के बाद वे राहत महसूस कर रहे हैं। किसी दबाव में नहीं हैं। बेरोकटोक जो चाहेंगे करेंगे। भाजपा से उन्हें भला क्या खतरा? उलटे खतरा तो भाजपा के बल से टल गया है। पर जानकार कुछ और ही खुसर-फुसर कर रहे हैं। नीतीश कुमार अब लालू प्रसाद से डर रहे हैं। लालू चुप तो बैठेंगे नहीं। नीकु से उन्होंने इस बार जैसा धोखा खाया है वैसा पहले कभी नहीं खाया था। नीकु भी जानते हैं कि लालू प्रसाद के पास यादवी ताकत के रूप में जो खजाना है, वह किसी दूसरे नेता के पास नहीं है। ऊपर से मुसलमान भी उन पर भरोसा करते ही हैं। अति पिछड़े और दलित को अगर विभाजित और लालू प्रसाद से अलग भी मान लें तो भी जाति और वर्ग के हिसाब से लालू की ताकत कम नहीं हो सकती। ऊपर से लालू ने न केवल अपने लोगों बल्कि आम आदमी तक यह संदेश तो दे ही दिया है कि उनके साथ धोखा हुआ है। नीतीश ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए उनके साथ छल किया है। नीकु को कोई काट नहीं सूझ रही। ऊपर से लालू समर्थक जमात में दरार पैदा करना आसान काम नहीं है।

अतीत में लालू चुनाव से कुछ महीने पहले ही तैयारी शुरू करते थे। लेकिन फिलहाल तो उन्होंने काफी पहले से ही अपनी ताकत को संजोने की मुहिम छेड़ दी है। नीकु जितना ज्यादा नरेंद्र मोदी का गुणगान करेंगे, उनको कम बल्कि लालू प्रसाद को उससे ज्यादा फायदा होगा। फिर नीकु के लिए मोदी बतौर ढाल काम आ पाएंगे, इस पर भी जानकार भरोसा नहीं कर रहे। यानी अब लालू के दोनों हाथों में लड्डू होंगे। एक तरफ वे नीकु की बखिया उधेड़ कर उनका नुकसान करेंगे तो दूसरी तरफ जब नरेंद्र मोदी पर हमला बोलेंगे तो उससे भी मोदी का कम ज्यादा नुकसान नीकु का ही होगा। भाई लोग अभी से जोड़-तोड़ करने लगे हैं कि चुनाव में इस बार मुद्दा व्यवस्था विरोध होगा। ऊपर से जात-पांत तो बिहार का स्थायी चरित्र है ही। नीकु भी इस हकीकत को बखूबी जानते हैं कि पिछले चुनाव में भी विकास के नारे की तुलना में जात-पांत ही ज्यादा कारगर साबित हुआ था। पिछड़ों की एकजुटता ने रंग दिखा दिया था। हर कोई एक ही सवाल पूछ रहा है कि नीकु अब पिछड़ों के नेता तो रहे नहीं। फिर तो नीकु का भय स्वाभाविक ही माना जाएगा।

 

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