हिमाचल: कत्ल की सजा काट, 24 साल बाद फिर विधायक बना है माकपा का यह नेता

हाल के दिनों में संपन्न हुए हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने सत्तापक्ष कांग्रेस को पछाड़ते हुए सूबे में बहुमत का आंकड़ा पा लिया है। कुल 68 सीटों में से भाजपा के 44 उम्मीदवार जीते हैं जबकि सत्ता में रही कांग्रेस केवल 21 सीटें हासिल कर सकी। चुनाव में दो निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी जीत हासिल की है। हालांकि इस चुनाव में ठियोग-कुमारसैन विधानसभा क्षेत्र के नतीजों ने देशभर के राजनीतिक विचारकों का ध्यान खींचा है। यहां से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवाद) के उम्मीदवार राकेश सिंघा ने जीत हासिल की है। उनकी ये जीत काफी अहम मानी जा रही है क्योंकि करीब 24 साल बाद सीपीएम का कोई नेता हिमाचल प्रदेश की विधानसभा में पहुंचेगा। वैसे साल 1993 में भी सिंघा शिमला सीट से चुनाव जीते चुके हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें अयोग्य करार दिए जाने के बाद उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई।

अपनी पिछली जिंदगी से जुड़ा सवाल पूछे जाने पर सिंघा कहते हैं कि वो अपना अतीत भूलना चाहते हैं और दोबारा चुने जाने पर बेहतर कार्य करना चाहते हैं। थाने के बागबानी परिवार में जन्मे सिन्हा (60) इलाके के खासे परिचित चेहरा हैं। वह इलाकों में होटल वर्कर, दिहाड़ी मजदूर और किसानों के प्रदर्शनों में मुख्य रूप से हिस्सा लेते रहे हैं। बता दें कि सीपीएम नेता सिन्घा ने हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी से छात्र नेता के रूप में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया। कॉलेज के दिनों में (साल 1978) हत्या के एक मामले में उनकी भागीदारी का मामला सामने आया। साल 1987 में इस अपराध के लिए उन्हें सजा हुई। अपने जेल के दिनों को याद करते हुए उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘इस दौरान मुझे भयंकर यातनाएं दी गईं।’

गौरतलब है कि जेल जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने सीपीएम नेता की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी लेकिन सजा काटकर लौटे सिंहा ने स्थानीय लोगों के बीच दोबारा अपनी स्वच्छ छवि बनानी शुरू की। एक बार फिर किसानों और मजूदरों के लिए अवाज बुलंद की। उन्होंने साल 2012 में भी ठियोग-कुमारसैन चुनाव लड़ा मगर कांग्रेस की विद्या स्टोक्स ने चार हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया। इस मामले में राकेश सिंहा का कहना है कि उन्होंने 2012 की हार के बाद हिम्मत नहीं हारी और मजदूरों व किसानों के हित का लिए कार्य किए।

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