जानें महिलाओं के कुछ ऐसे सांविधानिक अधिकार जिसकी जानकारी हर महिला को अवश्य होनी चाहिए
आज (8 मार्च) को समूचा विश्व अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है। महिलाओं में कानून के प्रति सजगता की कमी उनके सशक्तीकरण के मार्ग में रोड़े अटकाने का काम करती है। अशिक्षित महिलाओं को तो भूल जाइए, शिक्षित महिलाएं भी कानूनी दांवपेच से अनजान होने की वजह से जाने-अनजाने में हिंसा सहती रहती हैं। ऐसे में महिलाओं को कानूनी रूप से शिक्षित करने के लिए मुहिम शुरू करना वक्त की जरूरत बन गया है। AknNews आपको बताने जा रहा है ऐसे ही कुछ अधिकार जिन्हें जानना हर भारतीय महिला के लिए जरूरी है।
निजता का अधिकार: एक महिला जिले के किसी भी थाने में अपना मामला दर्ज करा सकती है। इसके हर पुलिस थाने में एक महिला अफसर (हेड कॉन्स्टेबल की रैंक से नीचे की नहीं) चौबीसों घंटे उपलब्ध जरूर होनी चाहिए। किसी भी महिला की तलाशी सिर्फ महिला अधिकारी ही ले सकती है और गिरफ्तारी में भी लेडी अफसर का होना कानून अनिवार्य है। महिला को सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद नहीं गिरफ्तार किया जा सकता, हालांकि इस संबंध में मजिस्ट्रेट के निर्देशानुसार कार्रवाई हो सकती है।
बलात्कार पीड़ित महिला का बयान मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में बिना किसी अन्य की उपस्थिति में लिया जाएगा। वह चाहे तो लेडी कॉन्स्टेबल या पुलिस अधिकारी को भी बयान दर्ज करा सकती है। पूछताछ के लिए महिला को पुलिस थाने की बजाय उसके घर पर ही पूछताछ करने का प्रावधान भी किया गया है।
छेड़छाड़ के खिलाफ प्रावधान: भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 294 व 509 के तहत किसी भी महिला को लेकर कोई अभद्र इशारा, हरकत करना कानूनन अपराध है। अगर ऐसे हालात में कोई महिला पुलिस स्टेशन जाती है तो उसे उसके बयानों के लिए ताना नहीं मारा जा सकता। अगर पुलिस कार्रवाई में हीला-हवाली करती है तो महिला के पास अदालत या राष्ट्रीय महिला आयोग के पास अपील का अधिकार है।
समान वेतन का अधिकार: इस बिल के जरिए सभी लिंग के लोगों को समान वेतन के अधिकार दिए गए। भारत सरकार की ओर से सभी कार्यों के लिए न्यूनतम मजदूरी तय की गई है। अगर आपके कार्यालय में लैंगिक आधार पर वेतन में असमानता है तो आप श्रम आयुक्त या महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से सीधे शिकायत कर सकती हैं। दिल्ली में महिलाओं के लिए न्यूनतम वेतन 423 रुपये प्रति दिन है।
आपित्तजनक दुष्प्रचार:
इंटरनेट के दौर में इस कानून की जानकारी होना महिलाओं के लिए बेहद जरूरी है। महिला का अभद्र प्रतिनिधित्व (निषेध) अधिनियम, 1986 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति या संगठन का किसी भी महिला के प्रति आपत्तिजनक जानकारी प्रकाशित करना (ऑनलाइन या ऑफलाइन) गैरकानूनी है। अगर कोई व्यक्ति सोशल मीडिया वेबसाइट पर आपको परेशान कर रहा है या आपकी पहचान से छेड़छाड़ कर रहा है तो आप नजदीकी साइबर सेल में मामला दर्ज करा सकती हैं।
मैटर्निटी बेनफिट एक्ट:
इस कानून के तहत महिलाओं को गर्भावस्था से जुड़े अधिकार दिए गए हैं। किसी संस्था में अपनी डिलीवरी की तारीख से 12 महीने पहले तक में न्यूनतम 80 दिन काम करने वाली महिला को इसका फायदा मिलता है। इसमें मैटर्निटी लीव, नर्सिंग ब्रेक्स, मेडिकल भत्ते इत्यादि शामिल हैं। इसके अलावा मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के तहत, बिना स्पष्ट कारण बताए गर्भपात पर प्रतिबंध है।
कार्यस्थल पर यौन शोषण:
2013 में पास हुए इस कानून के जरिए महिलाओं को कार्यस्थल पर कई अधिकार दिए गए। ऑफिस में यौन शोषण की परिभाषा में- सेक्सुअल टोन के साथ भाषा का प्रयोग, पुरुष सहयोगी का निजता की सीमा लांघना, जान-बूझकर गलत तरीके से छूना इत्यादि शामिल है। सभी निजी व सरकारी फर्मों में एंटी सेक्सुअल हैरेसमेंट कमेटी बनाना अनिवार्य है, जिसकी 50 फीसदी सदस्य महिलाएं होनी चाहिए।
मुफ्त सहायता का अधिकार:
बिना किसी वकील के पुलिस थाने जाने पर महिला के बयान में बदलाव संभव है। महिलाओं को यह पता होना चाहिए कि उन्हें कानूनी मदद का अधिकार होता है और उन्हें इसकी मांग करनी चाहिए। दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार, बलात्कार की रिपोर्ट आने पर, थाना प्रभारी को दिल्ली की कानूनी सेवा प्राधिकरण को मामले की जानकारी देनी होती है। फिर यह संस्था पीड़िता के लिए वकील का इंतजाम करती है।
दहेज निषेध कानून:
इस कानून के जरिए देश में दहेज लेना और देना, दोनों को अपराध बनाया गया। विवाह के समय वर-वधू पक्ष की ओर ऐसे किसी भी ऐसे लेन-देन पर जेल की सजा हो सकती है। महिलाओं को स्पष्ट अधिकार हैं कि वे पुलिस के पास जाकर दहेज मांगे जाने की शिकायत दर्ज करा सकती हैं। कानून के तहत, दोषी को 5 साल या ज्यादा की जेल व 15,000 रुपये या दहेज की रकम तक के जुर्माने का प्रावधान है।
घरेलू हिंसा:
आईपीसी की धारा 498ए में घरेलू हिंसा से जुड़े प्रावधान हैं। इस कानून के अनुसार, कोई भी व्यक्ति शिकायत दर्ज करा सकता है जहां उसके परिवार के किसी सदस्य ने पाशविकता दिखाते हुए अपमानित किया हो या ऐसा अंदेश जताया हो। यह कानून किसी भी लिंग पर लागू होता है।
संपत्ति का अधिकार:
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार महिलाओं को संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा। इसमें लैंगिक आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।