बसों में महिला परिचालकों की मौजूदगी से बेहतर होता सफर
सुमन केशव सिंह
महिलाओं की मौजूदगी हर जगह एक अलग माहौल तैयार करती है। चाहे वह कोई दफ्तर हो या दफ्तर के बाहर का आपाधापी वाला कार्यक्षेत्र। इस बात को समझना है तो चले जाइए भीड़भाड़ वाली उस जगह पर, जहां महिलाएं मौजूद हों। ऐसी जगहों पर भी महिलाओं की मौजूदगी का असर आपको साफ नजर आएगा। कुछ ऐसा ही माहौल दिल्ली परिवहन निगम की बसों में भी नजर आता है जब इनमें परिचालक (कंडक्टर) महिलाएं होती हैं। महिला कंडक्टरों का कहना है कि उनकी मौजूदगी का हर उम्र के यात्रियों की मानसिकता पर प्रभाव पड़ता है। जबकि पुरुष परिचालकों के साथ अक्सर यात्रियों काटकराव हो जाता है।
विवाद संभालने में महिलाएं बेहतर
48 साल की एक महिला कंडक्टर कहती हैं कि अक्सर यात्री बसों में चढ़ने के दौरान आपाधापी का माहौल बना देते हैं। उनका कहना है कि बस में सीट, टिकट व पैसे देने के दौरान अराजकता दिखाने वाले यात्री अचानक नियंत्रित व्यवहार करने लगते हैं। एक अन्य महिला कंडक्टर का कहना है कि अक्सर महिलाओं की सीट पर पुरुष यात्री बैठ जाते हैं और उठने के लिए कहने पर वे पुरुष परिचालकों से लड़ने लगते हैं, लेकिन महिला परिचालकों के टोकने पर वे तुरंत मान जाते हैं। वे चाह कर भी महिला कंडक्टरों से बहस नहीं कर पाते हैं।
महिला परिचालकों की मौजूदगी के बेहतर नतीजे
एक दूसरी महिला कंडक्टर कहती हैं कि महिलाओं की मौजूदगी से अगर बेहतर नतीजे आ रहे हैं तो दिल्ली सरकार इसे और बढ़ावा दे ताकि यात्रा अनुशासित और तनावरहित ढंग से हो सके। वे कहती हैं कि जब महिला यात्री से बसों में छेड़छाड़ होती है तो उसमें भी महिला परिचालकों की स्थिति काफी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। अक्सर महिलाएं ज्यादा भीड़भाड़ की स्थिति में अनायास किसी के छू जाने पर बदतमीजी का आरोप लगाकर लड़ने लगती हैं। तब हम स्थिति को संभालते हैं और उन्हें समझाते हैं कि महिला और मां होने के नाते हम इस बात को समझ सकते हैं कि किसी यात्री ने जानबूझ कर किसी से अभद्रता करने की कोशिश की या भीड़ की वजह से ऐसा हो गया।’
पुरुष परिचालकों से ज्यादा होती है बहस
अलका त्यागी कहती हैं कि बसों में महिला परिचालिकों की उपस्थिति अनिवार्य की जानी चाहिए, क्योंकि बसों में पुरुष परिचालकों की स्थिति काफी चिंताजनक होती है। बहुत से यात्री उनसे ठीक तरह से बात नहीं करते हैं। साथ ही छात्र और युवा हमेशा पुरुष कंडक्टरों से बहस करने या लड़ने को तैयार रहते हैं और इससे बचने के लिए वे कुछ बोल भी नहीं पाते हैं।
महिलाओं की भर्ती पर संवेदनशील नहीं सरकार
डीटीसी दिल्ली परिवहन मजदूर संघ के उपमहामंत्री कैलाश कहते हैं कि सरकार को महिला कंडक्टरों की भर्ती करनी चाहिए। आंध्र प्रदेश में परिचालिकाओं के लिए 30 फीसद आरक्षण है। वहां परिचालन के दौरान विवाद न के बराबर है। दिल्ली सरकार महिला कंडक्टरों की भर्ती को लेकर संवेदनशील नहीं है। यहां महिला परिचालक को अनुकंपा के आधार पर नौकरी दी जाती है।
“अगर दिल्ली सरकार महिला परिचालकों की उपस्थिति को लेकर कुछ सोच रही है तो ये सराहनीय कदम होगा क्योंकि पुरुषों की मानसिकता महिलाओं के सामने खुद को सभ्य और शालीन दिखाने की होती है। यह मनोवृत्ति यहां भी काम करती है। अगर महिलाएं ज्यादा उम्र की हैं तो भी वे अपने अनुभवों के आधार पर स्थिति की संवेदनशीलता समझकर व्यक्तिगत रूप से समस्या का समाधान करती हैं। मां, भाभी, चाची आदि संबंध स्थापित कर महिलाएं हालात पर काबू पाने में काफी सक्षम होती हैं।”
-डॉ सत्यकांत त्रिवेदी, मनोविज्ञानी