अनाथालय में दुष्कर्म
हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में चुराह घाटी के एक अनाथालय में छह बच्चियों के यौन शोषण का जो मामला सामने आया है, वह भरोसे और मानवीयता को शर्मसार करने वाला है। इस बात की कल्पना भी बेहद तकलीफदेह है कि जिन बच्चियों का कोई न हो और इसी वजह से वे किसी यतीमखाने में रह रही हों, वहां के कर्मचारी ही उनका यौन शोषण करने लगें। मामले का खुलासा होने के बाद वहां के लेखाकार, रसोइए और सफाईकर्मी को गिरफ्तार कर लिया गया है। लेकिन इसमें और लोगों के भी शामिल होने की आशंका है। निश्चित रूप से सबसे पहला सवाल अनाथालय के प्रबंधन पर उठता है कि उसने बच्चियों की देखभाल से लेकर उनकी सामान्य दिनचर्या पर निगरानी की क्या व्यवस्था की थी। लापरवाही की इंतहा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बच्चियों के साथ दुराचार पहले से चल रहा था और अनाथालय के किसी भी जिम्मेदार अधिकारी को इसकी जानकारी नहीं थी। रविवार को जब विधिक साक्षरता शिविर के आयोजन के दौरान बाल कल्याण समिति के सदस्यों ने बच्चियों से अलग-अलग बात की, तब जाकर कड़वी हकीकत सामने आई, वरना क्या पता इस पर कब तक परदा पड़ा रहता।
अनाथालय या बाल आश्रमों में बच्चियों का यौन शोषण, मारपीट और मानसिक उत्पीड़न की शिकायतें अक्सर सामने आती रही हैं। करीब साल भर पहले मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले में एक गैर-सरकारी संगठन के तहत चलने वाले माधव बाल आश्रम में कई बच्चियों से बलात्कार का मामला सामने आया था। वहां भी जब बाहर से एक जांच दल पहुंचा था, तब जाकर बच्चियों ने अपना दुख साझा किया। आखिर क्या वजह है कि अपनी जिस व्यथा को बच्चियां बाल कल्याण समिति या बाहर से जांच के लिए पहुंचे लोगों को बताती हैं, वही बातें अनाथालय या बाल आश्रम के किसी जिम्मेदार व्यक्ति को बताने की उन्हें हिम्मत नहीं होती है? क्या इसका मतलब यह भी है कि अनाथालय के प्रबंधन और व्यवस्था में लगा कोई भी व्यक्ति बच्चियों को भरोसे के लायक नहीं लगा? या फिर ऐसी जगहों पर बच्चियों को डरा-धमका कर रखा जाता है, ताकि उनके साथ कुछ भी हो, वे मुंह न खोलें?
उस मानसिक विकृति की हद समझना मुश्किल है कि बेसहारा बच्चियों का खयाल रखने की जिम्मेदारी जिन लोगों पर थी, उन्हें ही यौन शोषण जैसे अपराध को अंजाम देने में कोई हिचक नहीं हुई। अनाथालयों या बाल आश्रमों से जब शोषण या बलात्कार की कोई घटना किसी तरह सामने आ जाती है, तब जाकर प्रशासनिक स्तर पर थोड़ी सक्रियता दिखती है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की बात कही जाती है। लेकिन प्रबंधन और निगरानी की ऐसी कोई नियमित व्यवस्था नहीं की जाती कि ऐसी जगहों पर रहने वाले बच्चों को ऐसे जुर्म का शिकार न होना पड़े। इसके अलावा, बच्चों के प्रशिक्षण के स्तर पर भी घोर लापरवाही देखी जाती है। जबकि सबसे जरूरी यह है कि उन्हें कम उम्र से ही इस बात के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए कि वे अपने साथ होने वाले व्यवहार से लेकर अच्छे-बुरे स्पर्श तक की पहचान कर सकें। साथ ही ऐसी जगहों पर बच्चों की देखभाल के लिए जिन लोगों को नियुक्त किया जाता है, उनका बाल मनोविज्ञान के लिहाज से प्रशिक्षित और संवेदनशील कर्मी होना प्राथमिक शर्त होनी चाहिए, जिन पर बच्चे भरोसा कर सकें और कोई भी बात बेहिचक कह सकें।