विवाद में संबोधन
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में व्याख्यान देते हुए जो भी कहा उसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जो विपक्ष के एक नेता को नहीं कहना चाहिए। फिर भी उनके इस भाषण को लेकर कुछ विवाद उठ गया है। खासकर भारतीय जनता पार्टी ने इस पर तीखा एतराज जताया है। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने तो बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राहुल गांधी के भाषण की कड़ी आलोचना की है। साथ ही भाजपा के कई और नेताओं ने भी कैलिफोर्निया में दिए राहुल के भाषण को लेकर उन पर निशाना साधा है। इन आलोचनाओं का लब्बोलुआब यह है कि राहुल गांधी ने विदेश में प्रधानमंत्री की आलोचना की, उनके बारे में खराब टिप्पणी की, और इस तरह इससे देश की प्रतिष्ठा को या देश की छवि को चोट पहुंची है। यह आलोचना ध्यान खींचती है, तो शायद इसलिए कि यह परिपाटी रही है या अमूमन यह माना जाता रहा है कि देश से बाहर कुछ ऐसा नहीं कहा जाना चाहिए जो देश के भीतर या दलगत या चुनावी राजनीति में सामान्य समझा जाता है। अगर यह मर्यादा टूटती दिखे, तो सवाल उठने स्वाभाविक हैं। पर यह मामला इतना सीधा-सरल भी नहीं है। अगर देश की समकालीन दशा के बारे में कहना हो, तो क्या सब कुछ अच्छा-अच्छा ही कहा जाना चाहिए? विवाद की एक खास वजह शायद यह भी है कि कुछ बरसों से पश्चिम में बसे भारतवंशियों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने की होड़ राजनीतिक दलों के बीच तेज हुई है।
गर विपक्ष का कोई नेता सरकार के किसी फैसले की देश के भीतर आलोचना करता रहा हो, और दुनिया इससे वाकिफ भी हो, ऐसे में विदेश में उससे विपरीत राय व्यक्त करना क्या अपने में एक विचित्र बात नहीं होगी! भाजपा के वार पर पलटवार करते हुए कांग्रेस ने याद दिलाया है कि प्रधानमंत्री ने अपनी विदेश यात्राओं के दौरान कब-कब और किस-किस मौके पर विपक्ष पर तंज कसा या पूर्ववर्ती सरकार के भ्रष्ट या नाकारा होने की तरफ इशारा किया। राहुल गांधी के कैलिफोर्निया वाले भाषण की जो दो-तीन सबसे प्रमुख बातें गिनाई जा सकती हैं उनमें से एक यह है कि उन्होंने पिछले सत्तर साल की उपलब्धियों का बखान किया, जबकि मोदी खासकर अपनी चुनावी रैलियों में सत्तर साल का जिक्र कुछ इस तरह करते रहे हैं मानो उतने लंबे समय में कुछ हुआ ही न हो। दूसरे, राहुल ने जहां यूपीए सरकार के दौरान की ऊंची विकास दर का हवाला दिया, वहीं मोदी के कार्यकाल में इसमें आई गिरावट, नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था को पहुंची चोट और हर साल दो करोड़ नए रोजगार देने के वादे के बरक्स रोजगार के मोर्चे पर दिख रही शोचनीय हालत का जिक्र किया।
आज के जमाने में ये बातें ऐसी हैं जो दुनिया से छिपी नहीं रहतीं।
राहुल गांधी के भाषण की एक और बात भाजपा को चुभी होगी। राहुल ने भारत में असहिष्णुता बढ़ने और गोरक्षा के नाम पर हुई हिंसा की घटनाओं की तरफ ध्यान खींचते हुए विविधता की संस्कृति पर खतरे को रेखांकित किया। लेकिन राहुल कहें या न कहें, ऐसी घटनाएं दुनिया के संज्ञान में हैं। मसलन, गौरी लंकेश की हत्या पर भारत स्थित अमेरिकी दूतावास ने भी बाकायदा बयान जारी कर रोष जताया, वहीं इसी घटना और साथ ही भीड़ के हाथों हो रही हत्याओं पर संयुक्त राष्ट्र ने भी बयान जारी कर चिंता जताई है। इन बयानों से देश की छवि पर आंच आती है या नहीं? सवाल है, हमें हकीकत पर परदा डाल कर छवि की रक्षा करने की कोशिश करनी चाहिए, या कड़वे यथार्थ को स्वीकार कर उसे बदलने की?