नृत्यः परशु प्राप्त कर राम कहलाए परशुराम
छऊ नृत्य के जाने-माने गुरुओं में गुरु शशिधरन नायर का नाम शामिल है। वह करीब तीन दशक श्रीराम भारतीय कला केंद्र से जुड़े रहे। इस दौरान उन्होंने शास्त्रीय नृत्य की विभिन्न शैलियों के मेल-जोल से चक्रव्यूह, परिक्रमा, मीरा, कृष्ण कथा, श्रीदुर्गा जैसी नृत्य रचनाओं की परिकल्पना की। उन्होंने जिस तरह से पात्रों की परिकल्पना की है और उन्हें नृत्य में ढाला है, वह अनुपम रहा है। क्योंकि नृत्य और नृत्याभिनय के जरिए इन पात्रों की संवेदनाओं को स्पर्श करना मुश्किल काम है। शायद, इसी कारण उन्हें कला जगत में एक विशेष पहचान मिली। इसी क्रम में पिछले दिनों उन्होंने नृत्य रचना परशुराम पेश की। यह एक अनूठा प्रयास था।
विष्णु के छठे अवतार परशुराम हैं। उनकी उपस्थिति द्वापर और त्रेता युग के दोनों काल में मानी जाती है। एक तरफ वह कर्ण को अभिशापित करते हैं और दूसरी ओर मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अभिनंदन करते हैं। परशुराम के जन्म, उनकी पितृ-मातृ भक्ति, मानवता के उत्थान से संबंधित प्रसंगों को नृत्य रचना परशुराम में विशेष रूप से पिरोया गया था। महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ सम्मिलित भूभाग को परशुराम क्षेत्र माना जाता है। इस प्रसंग को नृत्य रचना में उद्घाटित किया गया है। यह नृत्य रचना छऊ, कलरिपयटु, भरतनाट्यम, कथकलि व समकालीन नृत्य शैलियों में पिरोई गई थी। परशुराम के अवतरण को गीत ‘परशुराम है ब्रह्मशक्ति, परशुधारी’ के जरिए दर्शाया गया। कलरिपयटु नृत्य शैली में हस्त व पद संचालन से कलाकारों ने समां बांधा।
वहीं संवाद पर आधारित नृत्य अभिनय के जरिए परशुराम के जन्म और उनके द्वारा माता के वध के प्रसंग को कलाकारों ने पेश किया। परशुराम के तप और भगवान शिव से उन्हें परशु प्राप्त होने के दृश्य को प्रकाश प्रभाव ने एक विशेष आकर्षण प्रदान किया। यहां गीत का अंश ‘परशु प्राप्त कर राम परशुराम कहलाए’ पंडित ज्वाला प्रसाद के आवाज में प्रभावकारी प्रतीत होता है। साथ ही, नृत्य रचना में कथकलि व कलरिपयटु नृत्यों के जरिए क्षत्रिय विहीन धरा के प्रसंग का चित्रण पेश किया गया। परशुराम और कर्ण के संवाद और शस्त्र प्रशिक्षण के दृश्य को कलाकारों ने मोहक अंदाज में पेश किया। परशुराम का संवाद ‘एक ब्राह्मण इतनी वेदना नहीं दे सकता’ नृत्य को चरमोत्कर्ष प्रदान करता है।