कालाष्टमी व्रत 2017: जानिए क्या है इस दिन का महत्व, क्यों रखा जाता है भैरव बाबा के लिए व्रत

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि कालाष्टमी के दिन कालभैरव का जन्म हुआ था। इसे भैरव अष्टमी के रुप में भी जाना जाता है। भैरव बाबा को भगवान शिव का रुप माना जाता है। भैरव रुप भगवान शिव का प्रचंड रुप माना जाता है। हिंदू पंचाग के अनुसार हर माह की कृष्ण पक्ष तिथि के दिन भैरव की पूजा करके इस दिन को कालाष्टमी का नाम दिया जाता है। इसी के साथ हर माह आने वाली अष्टमी के लिए कथा प्रचलित है कि इस दिन माता दुर्गा की

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घर में न हो गंगाजल तो इसका कर सकते हैं इस्तेमाल, करता है कई रोगों का नाश

हिंदू धर्म में गंगा जल को पवित्र माना जाता है, इसके साथ ही गंगा को पूजनीय माना गया है। हिंदू धर्म के साथ पूरी दुनिया में गंगा की पवित्रता प्रख्यात है। इसके जल को अमृत माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि भागीरथ मां गंगा को धरती पर लेकर आए थे। माना जाता है कि भागीरथ जी गंगा को जिस रास्ते से गंगा की धारा को हिमायल से लेकर आए थे उस मार्ग पर कई दिव्य औषधियां और वनस्पतियां पाई जाती हैं। इन्हीं कारणों से माता

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महज धागा भर नहीं है कलावा, हर समस्या के लिए बांधा जाता है अलग रंग का यह ‘रक्षासूत्र’

हिंदू धर्म में हर धार्मिक कार्य में एक लाल धागा प्रयोग किया जाता है। इस लाल धागे को कलाई में पहने जाने के कारण कलावा कहा जाता है। कलावा तीन रंगों के मेल से बना होता है, इन तीन रंगों के लिए मान्यता है कि वो ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियों का प्रतीक मानी जाती हैं। कलावे को रक्षा सूत्र भी माना जाता है, इसे धारण करने से हमारे आस-पास की नकारात्मक शक्तियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके साथ ही इस लाल धागे के लिए मान्यता है

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आखिर भगवान शिव को क्‍यों लेना पड़ा शिवलिंग का रूप, जानिए किसने दिया था ब्रह्मा को कभी न पूजे जाने का श्राप

भगवान शिव को देवों का देव कहा जाता है। हर वेद और पुराण में भगवान शिव को महाकाल और सृष्टि के निर्माता के रुप में देखा गया है लेकिन कहीं भी उनके जन्म से जुड़ी कोई बात नहीं कही गई है। भगवान शिव को निरंकार माना जाता है। निरंकार उसे कहा जाता है जिसका कोई रुप नहीं होता है। माना जाता है कि भगवान शिव ने ही सृष्टि के निर्माण के बारे में सोचा था। इसके बाद उन्होनें भगवान विष्णु को जन्म दिया। भगवान विष्णु की नाभि से ब्रह्मा जी

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चरणामृत और पंचामृत के सेवन से मिल सकती है जीवन में सफलता, जानिए क्या है इनका महत्व

हिंदू धर्म में मंदिर जाने पर और किसी भी शुभ कार्य के बाद चरणामृत या पंचामृत दिया जाता है। भक्त इसे सीधे हाथ में लेकर फिर ग्रहण करते हैं। माना जाता है कि इसे ग्रहण करने से शरीर में मौजूद नकारात्मक शक्तियां खत्म होती हैं। चरणामृत का अर्थ होता है वो जल जिससे किसी पूजनीय देव-देवी या महात्मा आदि के चरणों को धोया जाता है। हिंदू धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है। श्रद्धालु इसे माथे से लगाने के बाद ही ग्रहण करते हैं। इसी तरह पंचामृत का

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मंदिर के शिखर पर लगाया जाता है ध्वज और कलश, जानें क्या है कारण

मंदिर एक ऐसा स्थान हैं जहां पर जप साधना करने से सकारात्मक जीवन से धरती में एक विशेष दैवीय ऊर्जा उत्पन्न हो जाती है। शास्त्रों में ऐसा माना जाता है कि शब्दधनी से किसी भी स्थान पर ऊर्जा उत्पन्न की जाती है जिसे प्राण कहा जाता है। इष्ट को साकार रुप देने के बाद ही उनके सामने किया गए पूजन से पूरा क्षेत्र दिव्य ऊर्जा से भर जाता है। इसी को मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा करना कहा जाता है और इसके बाद आम जन प्रतिमा से ऊर्जा महसूस करते हैं। इसी

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गायत्री मंत्र के जाप से ठीक हो सकते हैं बड़े से बड़े रोग, जानें क्या हैं अन्य फायदे

गायत्री मंत्र का जाप हर किसी के लिए उपयोगी माना गया है। शास्त्रों में गायत्री मंत्र के लिए बताया गया है कि जीवन के सबसे कठिन समय में ये आपकी मदद कर सकता है। माना जाता है कि शक्ति को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जाप किया जाता है। विद्यार्थियों के लिए ये जप सबसे उपयोगी माना जाता है। माना जाता है कि हर दिन 108 बार इस मंत्र की माला जपने बच्चों में ऊर्जा आती है और उन्हें विद्या प्राप्त करने में आसानी होती है। यदि नौकरी

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इस मंदिर में स्थापित है हजारों साल पुराना शिवलिंग, जानिए सिर्फ शिवरात्रि पर क्यों आते हैं भक्त

भगवान शिव को देवों का देव माना जाता है, पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव सृष्टि के निर्माण के समय प्रकट हुए थे। भगवान शिव का ध्यान करने से ही एक ऐसी छवि उभरती है जिसमें वैराग है। इस छवि के हाथ में त्रिशूल, वहीं दूसरे हाथ में डमरु, गले में सांप और सिर पर त्रिपुंड चंदन लगा हुआ है। भगवान शिव अपने क्रोध के कारण विनाशकारी भी माने जाते हैं लेकिन वो नवनिर्माण के देवता माने जाते हैं। सभी देवों के ऊपर उन्हें माना जाता है। बुराई की वृद्धि

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ब्रह्मा जी का हुआ था भगवान विष्णु की नाभि से जन्म, इस काम के लिए शिव जी ने लिया था अर्धनारीश्वर रूप

शिव पुराण के अनुसार माना जाता है कि मासिक धर्म का सिर्फ महिलाओं को नहीं पुरुषों को भी हुआ करता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार ये माना जाता है लेकिन वैज्ञानिक तौर पर ये असंभव है। माना जाता है कि संसार के आरंभ से पहले त्रिदेव प्रकट हुए थे। भगवान विष्णु ने नाभि से ब्रह्मा जी को प्रकट किया था और संसार बनाने का सारा काम उन्हें दिया। इसके बाद ब्रह्मा जी ने आठ पुत्रों को जन्म दिया जिसमें सात ऋषि और नारद मुनि थे। ब्रह्मा जी द्वारा संसार का

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इस स्थान पर धरती के गर्भ से निकल रही है चमत्कारी ज्वाला, बादशाह अकबर ने भी मानी थी यहां हार

ज्वालामुखी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी। इस स्थान पर माता के दर्शन ज्योति के रुप में होते हैं। इसी कारण से इसे ज्वालामुखी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर कांगडा घाटी से करीब 30 कि.मीं दूर स्थित है। इस मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है, उन्हीं के द्वारा इस स्थल की खोज हो पाई थी। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माना जाता

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क्यों श्रीकृष्ण से पहले कहा जाता है राधे-राधे, जानें क्या है राधा नाम की महिमा

राधा एक ऐसा नाम है जिसके बिना श्री कृष्ण का नाम अधूरा माना जाता है। राधा नाम की महिमा ने अनेकों को परम आनंद की प्राप्ति करवाई है। राधा नाम की महिमा का एक प्रसंग हम आपके सामने लेकर आए हैं कि एक बार राधा कहने से व्यक्ति के कर्म कैसे बदल जाते हैं। एक संत नगर में पधारे तो एक व्यक्ति अपनी समस्या लेकर वहां पहुंचा और कहा कि मेरा बेटा भगवान को नहीं मानता है, कृपया आप ही उसे प्रभु के नाम की महिमा समझाएं। स्वामी उसकी बात

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जानें क्यों पवित्र माना जाता है गंगाजल, शास्त्रों में बताए गए हैं ये महत्व

हिंदू धर्म में गंगा जल को पवित्र माना जाता है, इसके साथ ही गंगा को पूजनीय माना गया है। हिंदू धर्म के साथ पूरी दुनिया में गंगा की पवित्रता प्रख्यात है। इसके जल को अमृत माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि भागीरथ मां गंगा को धरती पर लेकर आए थे। माना जाता है कि भागीरथ जी गंगा को जिस रास्ते से गंगा की धारा को हिमायल से लेकर आए थे उस मार्ग पर कई दिव्य औषधियां और वनस्पतियां पाई जाती हैं। इन्हीं कारणों से माता

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क्यों शादी के दिन घोड़ी पर दुल्हन लेने जाता है दूल्हा

भारतीय संस्कृति में शादी सिर्फ एक परंपरा ही नहीं उससे बढ़कर एक जीवन के रुप में माना जाता है। शादी को एक उत्सव के रुप में मनाया जाता है। इसमें अनेकों तरह की परंपराएं होती है जिसमें से एक है कि दूल्हा बारात लेकर घोड़ी पर ही क्यों जाता है। माना जाता है कि अपनी भाभी और बहन से शगुन के बाद ही दूल्हा घोड़े पर बैठकर अपने जीवनसाथी को लेने जाता है। ये सवाल हर किसी के दिमाग में एक बार अवश्य आया होगा कि दूल्हा सिर्फ घोड़ी पर

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ईद-ए-मिलाद 2017: जानिए मुस्लिम समुदाय में इस दिन का क्या है महत्व, क्यों सुन्नी मनाते हैं शोक

इस्लाम पर्वों की बात करते समय हम मुहर्रम, ईद-उल-फितर और ईद-उल-अदा से ही अधिकतर वाकिफ होते हैं। पैगंबर हजरत मोहम्मद और उनकी शिक्षा को ये दिन समर्पित किया जाता है। कई स्थानों ईद-ए-मिलाद को पैगंबर के जन्मदिन के रुप में और कई स्थानों पर इसे शोक दिवस के रुप में मनाया जाता है, माना जाता है कि इस दिन ही पैगंबर की मृत्यु हुई थी। मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद का जन्म इस्लाम कैलेंडर के अनुसार रबि-उल-अव्वल माह के 12वें दिन 570 ई. को मक्का

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इन 4 महिलाओं का किया अपमान तो होगा बड़ा नुकसान, जानें क्या कहते हैं धर्मग्रंथ

महिलाओं का सम्मान हमेशा करना चाहिए, इसका पाठ कोई पढ़ा नहीं सकता है। सिर्फ अपने घर की ही नहीं समाज की सभी महिलाओं के लिए इज्जत की भावना रखनी चाहिए। यही हमारे संस्कारों की परिचायक होती हैं। हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ रामचरितमानस में माना गया है कि महिलाओं का सम्मान हमेशा और हर स्थिति में करना चाहिए। इसके साथ ही उसमें लिखा है कि अपने से जुड़ी महिलाओं का अपमान किया जाए तो वो आपके भविष्य के लिए हानिकारक हो सकता है। अपने घर की महिलाओं या किसी भी

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