जानिए, गांधारी के 100 नहीं 102 थीं संतानें, गुस्से में पेट पर मुक्का मार गिरा दिया था गर्भ

गांधारी एक न्यायप्रिय महिला थी, लेकिन जब वो शादी होकर हस्तिनापुर आई थी तब वो जानती नहीं थी की उनके पति धृतराष्ट्र देखने में असमर्थ हैं। इसके पश्चात गांधारी को वेद व्यास द्वारा सौ पुत्रों का वरदान प्राप्त हुआ। महाभारत के काल में वरदान के द्वारा सब कुछ संभव था तो गांधारी ने वेद व्यास जी से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर लिया। गर्भ धारण के पश्चात दो वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी जब पुत्र का जन्म नहीं हुआ तो गुस्से में गांधारी ने अपने पेट पर मुक्का मार कर अपना गर्भ गिरा दिया। योगबल से वेद व्यास ने इस घटना को तत्काल जान लिया। वे गंधारी के पास आकर बोले, “गांधारी तूने बहुत गलत किया।” वेद व्यास ने आगे कहा, ‘मेरा दिया हुआ वर कभी मिथ्या नहीं जाता। अब तुम शीघ्र सौ कुण्ड तैयार करके उनमें घृत भरवा दो’। गांधारी ने उनकी आज्ञानुसार सौ कुण्ड बनवा दिए। वेदव्यास ने गांधारी के गर्भ से निकले मांसपिण्ड पर अभिमन्त्रित जल छिड़का जिससे उस पिण्ड के अंगूठे के ऊपर के हिस्से के बराबर सौ टुकड़े हो गए। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गांधारी के बनवाए सौ कुण्डों में रखवा दिया और उन कुण्डों को दो वर्ष पश्चात खोलने का आदेश दे अपने आश्रम चले गए।

दो वर्ष बाद सबसे पहले कुण्ड से दुर्योधन की उत्पत्ति हुई। दुर्योधन के जन्म के दिन ही कुन्ती के पुत्र भीम का भी जन्म हुआ। दुर्योधन जन्म लेते ही गधे की तरह रेंकने लगा। ज्योतिषियों से इसका लक्षण पूछे जाने पर उन लोगों ने धृतराष्ट्र को बताया, “राजन! आपका यह पुत्र कुल का नाश करने वाला होगा। दुर्योधन को त्याग देना ही उचित है। किन्तु पुत्रमोह के कारण धृतराष्ट्र उसका त्याग नहीं कर सके। फिर उन कुण्डों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं दुश्शला नामक एक कन्या का जन्म हुआ। गंधारी गर्भ के समय धृतराष्ट्र की सेवा में असमर्थ हो गयी थीं इसलिए उनकी सेवा के लिये एक दासी रखी गई। धृतराष्ट्र के सहवास से उस दासी का भी युयुत्स नामक एक पुत्र हुआ। युवा होने पर सभी राजकुमारों का विवाह यथायोग्य कन्याओं से कर दिया गया। दुश्शला का विवाह जयद्रथ के साथ हुआ।

कौरव न होते तो महाभारत न होता। महाभारत धृतराष्ट्र और गांधारी के 100 बेटे(कौरव) और पांडु के पांच बेटों(पांडवों) के बीच धर्मयुद्ध की लड़ाई और सत्य के जीत की कहानी है पर बहुत कम लोग जानते हैं कि कौरव 100 नहीं बल्कि 102 थे। गंधारी जब धृतराष्ट्र से विवाह कर हस्तिनापुर आईं तो धृतराष्ट्र के अंधे होने की बात उन्हें पता नहीं थी। पति के अंधा होने की बात जानकर गंधारी ने भी आंखों पर पट्टी बांधकर आजीवन पति के समान रोशनी विहीन जीवन जीने का संकल्प लिया। उनके इस संकल्प का युद्ध के दौरान दुर्योधन का फायदा हुआ था।

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