जगन्नाथ पुरी: इस मंदिर में विराजमान हैं अधूरी बनी मूर्तियां, सदियों से हो रहा है ऐसे ही पूजन

उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ पुरी का मंदिर भगवान जगन्नाथ को समर्पित है। भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण के रुप हैं। ये मंदिर भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ है जगत का स्वामी। इनकी नगरी जगन्नाथपुरी कहलाती है। ये हिंदूओं का प्रमुख मंदिर है, इसे चारधामों में से एक धाम माना जाता है। इस मंदिर का रथ यात्रा उत्सव सबसे प्रसिद्ध है। इस रथयात्रा को पूरे शहर में निकाला जाता है। इस मंदिर के तीनों प्रमुख देवता भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों अलग और भव्य रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा के लिए निकलते हैं। इस उत्सव को मध्य काल से ही उल्लासपूर्वक मनाया जाता है। ये उत्सव भारत के अधिकतर कृष्ण मंदिरों में मनाया जाता है। ये मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए भारत ही नहीं विश्वभर में प्रसिद्ध है।

जगन्नाथपुरी के मंदिर के लिए मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की इंद्रनील या नीलमणि से निर्मित मूल मूर्ति, एक वृक्ष के नीचे मिली थी। ये मूर्ति इतनी चमकदार थी कि इसे पृथ्वी में वापस छुपा दिया गया। इसके बाद एक बार मालवा नरेश इंद्रदुयम को ये सपने में दिखाई दी। इसके बाद भगवान विष्णु ने उसे दर्शन देकर कहा कि वो पुरी के समुद्र तट पर जाए। उसे वहां एक लकड़ी का लठ्ठा मिलेगा। उसी से मूर्ति का निर्माण करवाए। इसके बाद विश्वकर्मा उसके सामने उपस्थित हुए और मूर्ति निर्माण शुरु हुआ। विश्वकर्मा ने शर्त रखी कि एक माह में वो मूर्ति तैयार करेंगे और ये काम एकांत में करेंगे। इसलिए एक माह तक उनके कक्ष में कोई ना प्रवेश करे।

राजा से रहा नहीं गया और अंतिम के कुछ दिनों में वो कमरे में दाखिल हो गए। उनके दाखिल होने पर विश्वकर्मा ने कहा कि अभी मूर्ति अधूरी है और उसके हाथ नहीं बने है। आप कमरे में प्रवेश कर गए। अब ये मूर्तियां इसी तरह रहेंगी और इन्हें ऐसे ही स्थापित करें। इसके बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां इसी तरह विराजित हैं और इसी रुप में पूजी जाती हैं। वर्तमान में इस मंदिर का आर्कषण इस मंदिर की रसोई है। इस रसोई को भारत की सबसे बड़ी रसोई माना जाता है।

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