ज्योतिर्लिंग के साथ ही स्थापित है शक्तिपीठ, जानें क्या है देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम का महत्व

झारखंड के देवघर में स्थित प्रसिद्ध तीर्थस्थल बैद्यनाथ धाम में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग स्थापित है। यह धाम सभी ज्योतिर्लिंगों से सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के साथ शक्तिपीठ भी मौजूद है। इस कारण से इस स्थान को ह्रदय पीठ या हार्द पीठ के नाम से भी जाना जाता है। जहां पर मंदिर स्थित है उस स्थान को देवघर यानी देवताओं का घर कहा जाता है। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है। मान्यता है कि यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है।

बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के लिए मान्यता है कि एक बार राक्षसराज रावण ने हिमालय पर जाकर शिवजी की प्रसन्नता के लिए तपस्या की थी और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने सिर काट-काटकर उन्हें अर्पित कर रहा था। नौं सिर अर्पित करने के बाद जैसे ही वो दसवां सिर अर्पित करने वाला था भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और उसके सभी सिर वापस लगा दिए। भगवान शिव ने रावण को वर मांगने के लिए कहा तो रावण ने कहा कि वो इस शिवलिंग को लंका में ले जाकर स्थापित करना चाहता है। भगवान शिव ने उसे आज्ञा दी और साथ चेतावनी देते हुए कहा कि यदि बीच में किसी स्थान पर इस लिंग को जमीन पर रख दिया तो यह वहीं स्थापित हो जाएगा।

रावण को अपने ऊपर बहुत अहंकार था इसलिए वो शिवलिंग को लेकर लंका की तरफ चल दिया। बीच रास्ते में थकान होने और लघुशंका के लिए वो रुका और उसने शिवलिंग अहीर को थमा दिया। अहीर को शिवलिंग बहुत भारी लगा तो उसने जमीन पर रख दिया। इसके बाद शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित हो गए। रावण ने वापस आने पर बहुत कोशिश की लेकिन वो शिवलिंग को हिला भी नहीं पाया। इसके बाद रावण ने उस शिवलिंग पर अपना अंगूठा गड़ाकर लंका वापस चला गया। भगवान विष्णु और ब्रह्म देव ने आकर उस शिवलिंग का पूजन किया और उनके पूजन से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दर्शन दिए और उस शिवलिंग की सभी देवों के सामने पुनः स्थापना हो गई। इसके बाद सभी देव शिव स्तुति करते हुए स्वर्ग की तरफ लौट गए। दंत कथाओं के अनुसार वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को मनोवांछित फल देने वाला माना जाता है।

देवघर का शाब्दिक अर्थ होता है देवी-देवताओं का निवास स्थान। देवघर में बाबा भोलेनाथ का अत्यंत पवित्र और भव्य मंदिर है। हर साल शिवरात्रि के समय यहां मेला लगता है और लाखों श्रद्धालु बोल-बम का जयकारा लगाते हैं। मंदिर के समीप में ही एक विशाल तालाब भी स्थित है। बाबा बैद्यनाथ का मंदिर प्रमुख और सबसे पुराना माना जाता है। बाबा भोलेनाथ का मंदिर माता पार्वती के मंदिर से जुड़ा हुआ बना है।

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