Surya Grahan Solar Eclipse 2018: आज है साल का आखिरी सूर्य ग्रहण, यहां पढ़ें हर जरूरी जानकारी
सूर्य ग्रहण २०१८, Surya Grahan 2018, Surya Grahan August 2018 Today, Solar Eclipse 2018 11th August Today Time, Timings, Streaming: साल 2018 का आखिरी सूर्य ग्रहण 11 अगस्त को लग रहा है। भारतीय समय के अनुसार यह सूर्य ग्रहण शनिवार को दोपहर में लगने वाला है। यह 11 अगस्त दिन शनिवार को दोपहर 1 बजकर 32 मिनट पर शुरू होगा और शाम 5 बजकर 1 मिनट पर समाप्त होगा। ज्योतिष शास्त्र की मानें तो ग्रहण(सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण) का लगना अशुभ माना जाता है। कहते हैं कि ग्रहण के दौरान खुले आसमान के नीचे नहीं रहना चाहिए। इसके साथ ही मंदिर के दरवाजे बंद कर देने की बात भी कही गई है। इन सबके अलावा भी सूर्य ग्रहण को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं।
क्या है सूर्य ग्रहण: पृथ्वी अपनी धुरी पर निरंतर घूमते रहने के साथ-साथ सौरमंडल में सूर्य का चक्कर भी लगाती है। वहीं, चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है और वह पृथ्वी के चारों ओर घूमता रहता है। ऐसे में कई बार चंद्रमा घूमते-घूमते सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है। ऐसी दशा में पृथ्वी से सूर्य आंशिक या पूर्ण रूप से दिखाई नहीं देता। इसी घटनाक्रम को सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं। पहला पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है। जब चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी को अपनी छाया में ले लेता तो इसे पूर्ण सूर्य ग्रहण कहते हैं। ऐसी स्थिति में सूर्य की किरणें धरती तक नहीं पहुंच पाती हैं और धरती पर अंधेरा छा जाता है। दूसरा ग्रहण है आंशिक सूर्य ग्रहण। इसमें चंद्रमा सूर्य के कुछ हिस्से को ढक लेता है। इस दौरान धरती के कुछ हिस्सों पर सूर्य नजर नहीं आता। तीसरा है वलयाकार सूर्य ग्रहण। इसमें चंद्रमा, सूर्य को इस प्रकार से ढकता है कि सूरज का मध्य हिस्सा ही इससे कवर हो पाता है और सूर्य का बाहरी हिस्सा दिख रहा होता है। ऐसी स्थिति में वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।
शास्त्रों में ऐसे तथ्य सामने आते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण का संबंध भी सूर्य ग्रहण से रहा है। जिस दिन श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी डूबी, उस दिन सूर्य ग्रहण था। साथ ही जब यह नगरी कृष्ण के प्रपौत्र ने दोबारा बसाई थी, उस दिन भी सूर्य ग्रहण था।
साल 1851 में पहली बार सूर्य ग्रहण की तस्वीर ली गई थी। उस वक्त फोटोग्राफी शुरुआती दौर में थी। तस्वीरें क्लिक करने के लिए उस वक्त देग्युरोटाइप नाम की तकनीक का इस्तेमाल होता था। इसी के जरिए तस्वीरें क्लिक की जाती थीं।
वलयाकार सूर्य ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण में जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफी दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है अर्थात चन्द्रमा सूर्य को इस प्रकार से ढकता है, कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है और पृथ्वी से देखने पर चन्द्रमा द्वारा सूर्य पूरी तरह ढका दिखाई नहीं देता बल्कि सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है। कंगन आकार में बने सूर्यग्रहण को ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहलाता है।
पूर्ण सूर्य ग्रहण पूर्ण सूर्य ग्रहण उस समय होता है जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफी पास रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है और चन्द्रमा पूरी तरह से पृ्थ्वी को अपने छाया क्षेत्र में ले लेता है। इसके फलस्वरूप सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक पहुंच नहीं पाता है और पृथ्वी पर अंधकार जैसी स्थिति हो जाती है तब पृथ्वी पर पूरा सूर्य दिखाई नहीं देता। इस प्रकार बनने वाला ग्रहण पूर्ण सूर्य ग्रहण कहलाता है।
सूर्य ग्रहण को देखने के लिए वैज्ञानिक पिन होल का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। पिन होल को आसानी से ग्रामीण इलाकों में भी बनाया जा सकता है। इसके अलावा सूर्य ग्रहण देखने के लिए बाजार में कई सर्टिफाइड चश्में उपलब्ध हैं। सूर्य ग्रहण के दौरान सर्टिफाइट चश्मों का इस्तेमाल भी खूब किया जाता है। इसके साथ ही सूर्य ग्रहण देखने के लिए पनहोल कैमरे भी बनाए गए हैं। उल्लेखनीय है कि सूर्य ग्रहण के दौरान बाजार में इनकी मांग काफी बढ़ जाती है और खगोल विज्ञान में रुचि लेने वाले लोग ग्रहण को देखना मिस नहीं करते।
सूर्य ग्रहण के दौरान सोने से भी मना किया जाता है। ऐसा कहते हैं कि ग्रहण के समय सोने से सेहत पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार ग्रहण के समय मलमूत्र का त्याग भी नहीं करना चाहिए।
ऐसी मान्यता है कि सूर्य ग्रहण के दौरान भोजन नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही सूर्य ग्रहण के दौरान भोजन पकाने के लिए भी मना किया गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके पीछे सच्चाई क्या है। यदि नहीं तो आज हम आपको इस बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि ग्रहण के दौरान भोजन करने वाला व्यक्ति पाप का भागी होता है। कहते हैं कि जो व्यक्ति ग्रहण के समय भोजन करता है, उसके 12 वर्षों के पुण्य कार्य समाप्त हो जाते हैं। इसलिए ग्रहण के दौरान भोजन करने व पकाने से मना किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि सूर्य ग्रहण के दौरान निकलने वाला विकिरण भोजन को दूषित कर देता है। कहा जाता है कि यह दूषित भोजन करने से सेहत खराब हो सकती है। इसके अलावा ग्रहण के दौरान किए गए भोजन से अपच होने की भी बात कही गई है।
हमारे देश में ग्रहण को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक है ग्रहण के दौरान डाभ(कुशा) का प्रयोग। ज्योतिष शास्त्र की मानें तो राहु-केतु के सूर्य या चंद्रमा पर हावी होने की कोशिश के दौरान ग्रहण लगता है। राहु को तम के नाम से भी जाना जाता है और तम का मतलब अंधकार होता है। कहते हैं कि तमोगुण द्वारा सात्विक प्रकाश को दबाने से उसकी शक्ति अशुद्ध हो जाती है। बताते हैं कि इस अशुद्धता का सबसे ज्यादा प्रभाव खान-पान की वस्तुओं पर पड़ता है। मान्यता है कि जब इन खाद्य और पेय पदार्थों को कुशा पर रख दिया जाता है तो उनका दूषित तत्व समाप्त हो जाता है। माना जाता है कि कुशा तमोगुण के लिए कुचालक का काम करती है। ऐसे में सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण से एक घंटे पहले कुशा को खान-पान की वस्तुओं के ऊपर रख देने की बात कही गई है। कहते हैं कि ग्रहण के दौरान बर्तनों को भी डाभ(कुशा) से ढ़क देना चाहिए। ऐसा करने से खाद्य और पेय पदार्थों समेत बर्तनों की भी शुद्धता बरकरार रहने की मान्यता है।