उत्तराखंड के चमोली में टूटा ग्लेशियर और बना एक झील, ये झील बन रहा घाटी के लिए खतरा


चमोली की नीति घाटी ग्लेशियर टूटने से एक झील बन गई है। इस झील में लगातार पानी जमा हो रहा है। अगर झील में जमा पानी को निकाला नहीं गया तो निचली घाटी में बसे इलाकों के लिए खतरनाक हो सकती है। झील बनने की पूरी रिपोर्ट उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) ने राज्य के आपदा न्यूनीकरण केंद्र को दे दी है।

यूसैक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यह झील नीति गांव से 14 किलोमीटर ऊपर रायकांडा और पश्चिमी कामेट ग्लेशियर के संगम पर बनी है। झील की सेटेलाइट इमेज भी सरकार को सौंपी है। रिपोर्ट में सरकार से कहा गया है कि फिलहाल झील से खतरा नहीं है। लेकिन अगर झील से पानी नहीं निकाला गया तो तो यह खतरनाक हो सकती है।

झील की नापजोख
देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीटयूट ही ऐसी झीलों या ग्लेशियरों की नापजोख करता है। राज्य को झील की नापजोख को वाडिया से आग्रह करना होगा।

केदारनाथ त्रासदी भी झील से ही हुई थी
जून 2013 में आयी केदारनाथ आपदा का कारण चौराबाड़ी ग्लेशियर के टूटने के कारण बनी झील ही थी। यह झील टूटने से हुई अब तक की सबसे बड़ी घटना थी। इस घटना में करीब 4300 लोग मारे गए और निचली घाटियों में भारी नुकसान हुआ था।

क्यों टूटते हैं ग्लेशियर
वाडिया इंस्टीटयूट के वरिष्ठ भूवैज्ञानिक डॉ. पीएस नेगी का कहना है कि बर्फ पिघलने के कारण कई बार ग्लेशियरों के मलबे से जलधाराओं का प्रवाह रुक जाता है। इस कारण मौके पर झील बन जाती है। ग्लोबल वार्मिंग या प्राकृतिक दोनों कारणों से ऐसी झीलें बन सकती है।

यूसैक 2001 से रख रहा नजर
यूसैक निदेशक निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट ने बताया कि रायकांडा और पश्चिमी कामेट ग्लेशियर में जहां पर यह झील बनी है, वहां से अलकनंदा की मुख्य सहायक नदी धौली गंगा निकलती है। सबसे पहले 2001 में यहां झील बनी थी। केदारनाथ आपदा के बाद झील की गहन निगरानी शुरू की गई। पता चला है कि झील का पानी बढ़ता जा रहा है और इसे निकालना जरूरी है।

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