निपाह वायरसः बचाव ही है इलाज, पेड़ से गिरे फलों को खाने से करें परहेज और हाथों को रखें साफ

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक निपाह जानवरों से इंसानों में फैलने वाला एक वायरस है। इससे जुड़ा पहला मामला मलेशिया के किसी गांव में 1998 में देखा गया था। भारत में सबसे पहले संक्रमण 2001 में और फिर 2007 में पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में भी सामने आया था। इस वायरस से केरल के बाहर के लोगों को केवल तभी सावधान रहना चाहिए जब वे प्रभावित क्षेत्र की यात्रा कर रहे हों या किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आ रहे हों। निपाह वायरस के संक्रमण के लक्षणों की शुरुआत एन्सेफेलेटिक सिंड्रोम से होती है, जिसमें बुखार, सिरदर्द, म्यालगिया की अचानक शुरुआत, उल्टी, सूजन, विचलित होना और मानसिक भ्रम शामिल हैं।

निपाह वायरस संक्रमण के लिए कोई प्रभावी उपचार नहीं है। इस रोग से ग्रस्त लोगों का इलाज मात्र रोकथाम है। इस वायरस से बचने के लिए फलों, खासकर खजूर खाने से बचना चाहिए। पेड़ से गिरे फलों को नहीं खाना चाहिए, जब भी बाहर से कोई फल लेकर आए उसे अच्छे से गर्म पानी में धोकर खाएं। इस वायरस की चपेट में आने के बाद बहुत से मरीजों को इलाज के दौरान आईसीयू व वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है। 5 से 14 दिन तक इसकी चपेट में आने के बाद ये वायरस तेज बुखार और सिरदर्द की वजह बन सकता है, ये लक्षण 24-48 घंटों में मरीज को कोमा में पहुंचा सकते हैं, संक्रमण के शुरुआती दौर में सांस लेने में समस्या होती है जबकि आधे मरीजों में न्यूरोलॉजिकल दिक्कतें भी हो सकती हैं।

कैसे करें बचाव – निपाह वायरस की चपेट में आने के लिए ये सावधानियां बरती जानी बहुत जरूरी हैं। इस बात का खास ध्यान रखें कि आप जो खाना खाते हैं वह चमगादड़ या उनके मल से दूषित तो नहीं है। साथ ही चमगादड़ के कुतरे फलों को खाने से बचें। पाम के पेड़ के पास खुले कंटेनर में बनी पीने वाली शराब पीने से परहेज करें। बीमारी से पीड़ित किसी भी व्यक्ति के संपर्क में रहने से बचें। अपने हाथों को अच्छी तरह से साफ करें और धोएं। आमतौर पर शौचालय के बाल्टी और मग, रोगी के लिए उपयोग किए जाने वाले कपड़े, बर्तन और सामान को अलग से साफ करें। निपाह बुखार के बाद मरने वाले किसी भी व्यक्ति के मृत शरीर को ले जाते समय चेहरे को कवर करना जरूरी है। मृत व्यक्ति को गले लगाने या चुंबन करने से बचें।

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