पश्चिम बंगाल- दुविधा में दुकानदार और खरीदार
कारोबारियों के साथ-साथ उपभोक्ता भी यह कहने से परहेज नहीं कर रहे हैं कि केंद्र सरकार की ओर से एक राष्ट्र और कर के नाम पर लागू किया गया जीएसटी अभी तक तो किसी छलावे से कम नहीं लग रहा है। नई कर प्रणाली लागू हुए करीब साढ़े तीन महीने हो गए, लेकिन अभी भी जानकारी के अभाव में दुकानदार व खरीदारों की दुविधा बरकरार है। महानगर कोलकाता में रंग-अबीर, आभूषण, दवा, कपड़ा, मिठाई और जूता-चप्पल विक्रेताओं समेत कई दुकानदारों व खरीदारों से जनसत्ता ने जीएसटी बाबत उनकी राय मांगी तो लोगों ने कहा कि जीएसटी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली के अलावा भाजपा के ज्यादातर नेता देशहित में उठाया गया कदम बता रहे थे, लेकिन अभी तक की स्थिति और अस्पष्ट छवि को देखते हुए ऐसा नहीं लगता। इन लोगों ने कहा कि जिस नीति व प्रणाली में जटिलता हो उससे किसी का हित नहीं हो सकता।
ओल्ड चाइना बाजार स्थित रंग-अबीर बेचने वाले प्रतापमल गोविंद राम के मालिक ने बताया कि जीएसटी के कारण जहां कागजी कार्यवाही बढ़ गई है, वहीं भंडारण (स्टॉक) का हिसाब-किताब रखने में भी उन्हें परेशानी हो रही है। बिक्री में गिरावट आई है।देवेंद्र दत्त लेन स्थित आभूषण विक्रेता एमबी ज्वेलर्स के मनीष कुमार ने बताया कि सुविधा कम और झंझट ज्यादा हैं। उन्होंने कहा कि सोने की कीमत हर दिन घटती-बढ़ती है। रोज कितना सोना है यह तो आसानी से बताया जा सकता है, लेकिन कितने का सोना है और किस आभूषण पर कितने फीसद कर (टैक्स) है यह बताने में बीती एक जुलाई से खासी परेशानी हो रही है। रवींद्र सरणी स्थित दवा विक्रेता नवजीवन के प्रदीप शर्मा ने कहा कि एक जुलाई से पहले तक दवा पर दस फीसद की छूट दी जा रही थी। दो सौ रुपए का बिल बनने पर हम क्रेता से 180 रुपए लेते थे, लेकिन जीएसटी लागू होते ही छूट देनी तो बंद ही कर दी, पांच फीसद जीएसटी अतिरिक्त लगा दी। पहले ग्राहक को जो दवा 180 रुपए में मिलती थी, अब उसे 210 रुपए अदा करने पड़ रहे हैं। शर्मा ने बताया कि मामला दवा का है और लोगों के जीवन-मरण से जुड़ा है, लिहाजा मरीज के परिजन दवा खरीद तो रहे हैं, लेकिन भुगतान के वक्त जीएसटी लागू करने वालों को कोसते जरूर हैं।
वहीं, श्याम सुंदर सत्यनारायण (कपड़ा विक्रेता), तिवारी ब्रदर्स (मिठाई विक्रेता) मेट्रो शू कंपनी (जूता-चप्पल विक्रेता) का भी कमोवेश कुछ ऐसा ही कहना है। इनलोगों के मुताबिक केंद्र सरकार को देशहित में हर तरह के कदम उठाने का जितना अधिकार है, उससे कहीं ज्यादा उसकी यह जिम्मेदारी बनती है कि पहले कदम रखने की जगह को सुधारे।