बवाना की जीत ने ‘आप’ में फूंकी नई जान

24 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया। वहीं कांग्रेस के सुरेंद्र कुमार तीसरे नंबर पर रहे। 23 अगस्त को हुए इस उपचुनाव के नतीजे सोमवार को घोषित किए गए। औसत से कम (45 फीसद) मतदान होने के बावजूद जीत का अंतर कम न होने का मतलब साफ है कि कांग्रेस के हरसंभव प्रयास के बावजूद अल्पसंख्यकों ने भाजपा को हराने के लिए आप को वोट दिया। अल्पसंख्यक इलाकों में आप को बढ़त मिली। आप से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए वेद प्रकाश को जाटों के गांवों में समर्थन नहीं मिला, बल्कि जाटों की नाराजगी भी उनकी हार का कारण बनी। यही हाल पूर्वांचल बहुल इलाकों में दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी का हुआ। यहां भी वोट ज्यादातर आप को ही मिले।

आप उम्मीदवार को 59886, भाजपा उम्मीदवार को 35834 और कांग्रेस उम्मीदवार को 31919 वोट मिले। कांग्रेस ने अपनी हालत में सुधार किया है। 2015 के विधानसभा चुनाव में आप उम्मीदवार वेद प्रकाश ने भाजपा के गुग्गन सिंह को 50 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। कांग्रेस ने अपने तीन बार के विधायक सुरेंद्र कुमार को फिर से चुनाव में उतारा था। वे लगातार 1998, 2003 और 2008 में इस सीट से विधायक रहे, लेकिन 2013 और 2015 के चुनाव में वे न केवल चुनाव हारे बल्कि तीसरे नंबर पर भी रहे।

आप के टिकट पर 2015 का विधानसभा चुनाव जीते वेद प्रकाश के इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होने से बवाना की सीट खाली हुई थी। हालांकि भाजपा के नेता ही वेद प्रकाश की उम्मीदवारी को पचा नहीं पा रहे थे। वहीं भाजपा और कांग्रेस जिन 26 गांवों में बेहतर समर्थन का दावा कर रही थी, उनमें भी आप को सफलता मिली। बताया जा रहा है कि वेद प्रकाश से नाराज लोगों ने कांग्रेस के बजाय आप को वोट दिया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को हरियाणा मूल का होने का गांवों में भरपूर लाभ मिला। बवाना विधानसभा क्षेत्र हरियाणा की सीमा से लगा हुआ है। आप के टिकट पर बवाना चुनाव जीतने वाले रामचंद्र बसपा के टिकट पर 2008 में विधानसभा चुनाव लड़कर अपनी जमानत जब्त करा चुके हैं, लेकिन वे उत्तर प्रदेश के मूल निवासी हैं और शाहबाद डेयरी के इलाके से आते हैं जहां बड़ी तादाद में उत्तर प्रदेश व बिहार के प्रवासी रहते हैं। यही बात उनके पक्ष में गई। गरीब बस्तियों का वोट भी आप को मिला, जहां केजरीवाल ने जम कर प्रचार किया था। दिल्ली में ज्यादातर अनधिकृत कालोनियां कांग्रेस के नेताओं ने बसार्इं, लेकिन उनके विधायक उन कालोनियों में काम करवाने के बजाए नई कालोनी बसाने में लगे रहे। इसका फायदा भी केजरीवाल और आप को मिला। बवाना में बसे ज्यादातर मुसलिम मतदाताओं ने इस चुनाव में कांग्रेस के बजाय आप को वोट दिया ताकि भाजपा चुनाव न जीत पाए। फरवरी 2015 के विधानसभा चुनाव में मिली प्रचंड जीत के बाद दिल्ली के हर चुनाव में आप को हार का मुंह देखना पड़ा। वहीं निगम चुनाव के बाद तो पार्टी में भारी बगावत हुई और केजरीवाल के सहयोगी रहे कपिल मिश्र ने सीधे उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा दिए। हालात ऐसे हो गए कि हर मुद्दे पर बोलने वाले केजरीवाल ने सार्वजनिक रूप से चुप्पी साध ली। हालांकि इस उपचुनाव में उन्हें इसका फायदा मिला।

माना जा रहा था कि अगर इस चुनाव में आप हार जाती है तो उसके नेताओं का मनोबल इतना गिर जाता कि उसे दोबारा उठाना कठिन हो जाता। 13 अप्रैल को राजौरी गार्डन उपचुनाव में न केवल आप हारी बल्कि उसके उम्मीदवार को सिर्फ दस हजार वोट मिले। वहीं कांग्रेस के वोट औसत में 21 फीसद उछाल के साथ यह 33 फीसद पर पहुंच गया था। इससे कांग्रेस को निगम चुनाव में बड़ा सहारा मिला। माना जा रहा है कि अगर निगम चुनाव में कांग्रेस में बगावत नहीं होती तो वह इससे बेहतर नतीजे लाती। गैर-भाजपा वोटों के आप और कांग्रेस में बंटने से वोट का औसत बढ़े बिना भाजपा तीसरी बार निगम चुनाव जीती। 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद से हर चुनावी जीत का श्रेय मोदी को देने वाले भाजपा नेता इस उपचुनाव नतीजे को उनसे जोड़ने से कतरा रहे हैं।बवाना उपचुनाव में कुल आठ उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन तीन प्रमुख दलों ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। पैसे पानी की तरह बहाए गए। दिल्ली की आप सरकार महीने भर से बवाना में ही डटी थी। कांग्रेस के सारे नेता भी वहीं जमे थे। प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन के प्रयास से कांग्रेस के वोटों में कुछ बढ़ोतरी हुई है।

 

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