गोरक्षा के बहाने

पिछले कुछ समय से जिस तरह गोरक्षा के नाम पर अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं, उसे देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चेतावनी दी थी। मगर उसका कोई असर नहीं हुआ। अब सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को निर्देश दिया है कि गोरक्षा के नाम पर हिंसा को रोकने के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को नोडल अधिकारी बनाया जाए। वे राजमार्गों पर गश्त तेज करें और गोरक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करें। देखना है, इस मामले में

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खंडित स्वप्न

महात्मा गांधी संसदीय व्यवस्था के लिए कभी अधिक उत्साहित नहीं थे। वे उसकी तुलना वेश्या और बांझ औरत से करते थे। आज किसी भी नेता द्वारा की गई ऐसी तुलना के बाद देश का बौद्धिक वर्ग उसके ऊपर टूट पड़ता। उन्होंने संसद को एक ऐसी संस्था कहा जो स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकती, जिसके साथ सरकार खेलती रहेगी। साथ ही, इससे वे किसी रचनात्मक-उत्पादक कार्य की अपेक्षा भी नहीं करते थे। महात्मा गांधी भारत को लाखों स्वतंत्र ग्रामों का संघ बनाना चाहते थे। यही कारण था कि बापू

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रोहिंग्या मुसलमान: कौन हैं, क्यों म्यांमार की सेना कर रही है जुल्म और पलायन की वजह

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के अनुसार पिछले दो हफ्तों में करीब 1.23 लाख रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से पलायन कर चुके हैं। म्यांमार में 25 अगस्त को भड़की हिंसा के बाद करीब 400 लोग मारे जा चुके हैं। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार (छह सितंबर) को म्यांमार दौरे में इस मुद्दे का जल्द समाधान खोजने की उम्मीद जताई। आखिर रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा क्या है? म्यांमार में करीब 11 लाख रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं। सबसे ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान के राखिन प्रांत में पाए जाते हैं। रोहिंग्या मुसलमान खुद को अरब और फारसी

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दिखावे का देशप्रेम

सिनेमा हाल में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाया जाना किस उद्देश्य की पूर्ति करता है, इस पर विचार होना चाहिए। राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करना हमारे मौलिक कर्तव्यों में शामिल है और इसमें कोई संदेह नहीं कि राष्ट्रगान और अन्य राष्ट्रीय प्रतीक हमेशा ही हमें देशभक्ति की भावना से सराबोर करते हैं। यह और बात है कि यह भावना 52 सेकंड तक ही रहती है। उसके बाद सब कुछ पहले जैसा चलता रहता है। वही निजी स्वार्थ, वही जुगाड़ू प्रवृत्ति और वही दान-दक्षिणा और चाय-पानी की आड़ में

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Teachers Day 2017: जानिए उस शख्स को जिसके जन्मदिवस के अवसर पर मनाया जाता है ‘शिक्षा दिवस’

देश के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भारतीय शिक्षा जगत को नई दिशा दी। उनका जन्मदिन देश शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है। वह निष्काम कर्मयोगी, करुण हृदयी, धैर्यवान विवेकशील विनम्र थे। उनका आादर्श जीवन भारतीयों के लिए ही नहीं, अपितु संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणास्रोत है। डॉ. राधाकृष्णन का जन्म दक्षिण मद्रास में लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तिरुतनी नामक छोटे से कस्बे में 5 सितंबर सन् 1888 को सर्वपल्ली वीरास्वामी के घर पर हुआ था। उनके पिता वीरास्वामी जमींदार की कोर्ट में एक अधीनस्थ

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Happy Teachers Day: कभी ये हुआ करते हैं गुमनाम टीचर, आज हैं बड़े नेता

आज देशभर में टीचर डे मनाया जा रहा है। हमारे राजनीति में भी कई ऐसे राजनेता हैं जो कभी स्कूल में टीचर हुआ करते थे। वो भी ऐसे टीचर जो अपने बच्चों के फेवरेट। सबसे पहले बात करते हैं समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह के बारे में। नेताजी ने करिअर की शुरुआत राजनीति से नहीं बल्कि टीचर से हुई थी। वे राजनाति में आने से पहले एक टीचर रह चुके हैं। उन्होंने टीचिंग का करियर यूपी के करहल क्षेत्र के जैन इंटर कॉलेज से श‌ुरू क‌िया था। उन दिनों

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Teachers Day 2017: जानिए भारत में क्यों मनाया जाता है शिक्षक दिवस, क्या है इसके पीछे का इतिहास

भारत में सन् 1962 से 5 सितंबर को टीचर्स डे मनाया जा रहा है। इस दिन महान शिक्षाविद् और भारत के पूर्व उप-राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्‍णन का जन्म हुआ था। राधाकृष्‍णन ने बहुत बड़ा योगदान भारत के शिक्षा क्षेत्र में दिया है। उनका मानना था कि ‘एक शिक्षक का दिमाग देश में सबसे बेहतर दिमाग होता है’। एक बार डॉ. राधाकृष्णन के कुछ छात्रों और दोस्तों ने उनसे कहा कि वो उनके जन्मदिन को सेलिब्रेट करना चाहते हैं। इसके जवाब में डॉ. राधा कृष्णन ने कहा कि मेरा जन्मदिन अलग

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दुनिया मेरे आगे- परंपरा बनाम विवेक

बंशीधर मिश्र  इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में, जब विज्ञान की उपलब्धियां आसमान छू रही हैं, तब हमारा समाज आज भी अंधविश्वासों की अंधेरी सुरंग में भटकता दिख रहा है। गड़ा हुआ धन पाने के लिए कोई आदमी अपने ही बच्चे की बलि चढ़ा देता है, प्रेम करने के एवज खाप पंचायतें किसी परिवार के बेटे-बेटियों को फांसी पर लटका देती हैं, घर के सूने बंद कमरे में सोई किसी महिला की चोटी अचानक कट जाती है। समाज और पुलिस से लेकर मनोवैज्ञानिक तक इस रहस्य का पता लगाने में

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पंचायती राज की भूमिका

A report by अभिजीत मोहन  आजादी के बाद देश में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए ढेर सारे प्रयास हुए। इन्हीं प्रयासों में से एक है-पंचायतीराज व्यवस्था की स्थापना। इतिहास में झांके तो सबसे पहले ब्रिटिश शासन काल में 1882 में तत्कालीन वायसराय लार्ड रिपन ने स्वायत्त शासन की स्थापना का प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हुआ। इसके उपरांत ब्रिटिश शासकों ने स्थानीय स्वशासन संस्थाओं की स्थिति की जांच करने तथा उसके संबंध में सिफारिश करने के लिए 1882 तथा 1907 में शाही आयोग का गठन किया, जिसके तहत 1920

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बदलाव के बावजूद

पिछले कुछ समय से जिस तरह केंद्र सरकार के प्रदर्शन को लेकर अंगुलियां उठनी शुरू हो गई थीं, उसमें माना जा रहा था कि मंत्रिमंडल में बदलाव करते समय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने और योजनाओं में गतिशीलता लाने के मद्देनजर कुछ नए लोगों को लाया और कुछ की जिम्मेदारियों में बदलाव किया जाएगा। मगर ताजा फेर-बदल में यह मकसद नजर नहीं आता। इस फेर-बदल पर आगामी विधानसभा चुनावों की छाया भी नहीं देखी जा सकती। माना जा रहा था कि बिहार में जनता दल (एकी) के साथ नए गठजोड़ के

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कसौटी पर शिक्षा

जब स्कूलों में ‘नो फेलिंग पॉलिसी’ यानी किसी को भी अनुत्तीर्ण नहीं करने की नीति आई थी, तभी से इसके खिलाफ बातें शुरू हो गई थीं। शिक्षा का अधिकार कानून की शायद सबसे जोरदार बात यही थी। विद्यार्थियों को इस नीति ने फेल होने के डर से मुक्त कर दिया। इस नीति को अब बदला जा रहा है तो सीधी बात यह समझ में आ रही है कि फेल होने के डर की वापसी हो रही है। ऐसा नहीं है कि जब यह नीति लागू हुई थी, तब इसके दायरे

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सम्मान पर सवाल

पद्म पुरस्कारों के मसले पर अक्सर उठने वाले विवादों के क्रम में इनके लिए चयन की प्रक्रिया पर सवाल उठते रहे हैं। लेकिन जब बलात्कार के किसी आरोपी का नाम इस सम्मान पर विचार के लिए भी सामने आए तो इससे अफसोसनाक और क्या होगा! गौरतलब है कि 2017 के पद्म पुरस्कारों के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को 18768 आवेदन मिले। इनमें सबसे ज्यादा यानी 4208 लोगों ने गुरमीत सिंह राम रहीम इंसा को यह सम्मान देने की वकालत की थी। यही नहीं, इस स्वयंभू बाबा ने इस पुरस्कार के

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विकास को झटका

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून में देश का सकल घरेलू उत्पाद(जीडीपी) घट कर 5.7 प्रतिशत पहुंच गया, जबकि पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में यह 6.1 प्रतिशत था। राजग सरकार के तीन साल के कार्यकाल के दौरान यह अब तक सबसे निचला स्तर है। क्या इसकी वजह नोटबंदी थी? इस सवाल पर तो विशेषज्ञों में मतभेद हैं। अलबत्ता ज्यादातर अर्थशास्त्री और आर्थिक विशेषज्ञ जीएसटी (वस्तु एवं सेवाकर) के लागू होने को एक वजह के तौर पर देख रहे हैं। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने भी ने इस

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नृत्यः परशु प्राप्त कर राम कहलाए परशुराम

छऊ नृत्य के जाने-माने गुरुओं में गुरु शशिधरन नायर का नाम शामिल है। वह करीब तीन दशक श्रीराम भारतीय कला केंद्र से जुड़े रहे। इस दौरान उन्होंने शास्त्रीय नृत्य की विभिन्न शैलियों के मेल-जोल से चक्रव्यूह, परिक्रमा, मीरा, कृष्ण कथा, श्रीदुर्गा जैसी नृत्य रचनाओं की परिकल्पना की। उन्होंने जिस तरह से पात्रों की परिकल्पना की है और उन्हें नृत्य में ढाला है, वह अनुपम रहा है। क्योंकि नृत्य और नृत्याभिनय के जरिए इन पात्रों की संवेदनाओं को स्पर्श करना मुश्किल काम है। शायद, इसी कारण उन्हें कला जगत में एक

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