राहत की सौगात

सत्ता में बैठे लोग कल तक यही जता रहे थे कि जीएसटी को लेकर सबकुछ ठीकठाक है, सारी आलोचना बकवास है, जो भी शिकायतें हैं वे एक नई कर-व्यवस्था लागू करने पर स्वाभाविक रूप से होने वाली आरंभिक दिक्कतों की वजह से हैं और ये धीरे-धीरे दूर हो जाएंगी। लेकिन आखिरकार सरकार को अपने इस रुख से कुछ पीछे हटना पड़ा। वित्तमंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में हुई जीएसटी परिषद की बाईसवीं बैठक के बाद बीते शुक्रवार को सरकार ने जो घोषणाएं कीं, उनसे साफ है कि छोटे कारोबारियों और

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सब्र की इंतिहा, जंग का मूड

यशवंत सिन्हा की तुलना अरुण जेटली और नरेंद्र मोदी ने कर्ण के सारथी शल्य से कर अपनी ही भद पिटवाई। सिन्हा अस्सी पार के हैं। उनके साहस की सराहना करनी चाहिए। जेटली ने अस्सी की उम्र में नौकरी तलाशने का आरोप लगा कर उनका उपहास उड़ाया। भूल गए कि वे आइएएस की चमक-धमक वाली नौकरी छोड़ कर राजनीति में कूदे थे। शुरुआत में डीटीसी कर्मचारियों की यूनियन का अध्यक्ष तक बनने से परहेज नहीं किया था। कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री थे तो उनके निजी सचिव के नाते राजनीति के दांवपेच सीख

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कुछ हकीकत कुछ फसाने

तवलीन सिंह प्रधान मंत्री ने पिछले सप्ताह उनसे सावधान रहने को कहा, जो निराशा फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, जबसे मंदी के बादल अर्थव्यवस्था पर मंडराने लगे हैं। ठीक किया प्रधानमंत्री ने ऐसा करके। इन लोगों की तरफ अगर आप ध्यान से देखने की तकलीफ करेंगे तो वही चेहरे नजर आएंगे जो नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के पहले क्षणों से ही उनको बदनाम करने में लगे हुए हैं। याद कीजिए किस तरह पहली कोशिश उनकी थी ईसाई समाज में डर पैदा करने की। इस कोशिश में इतने सफल रहे

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मकतूल और कातिल

पी. चिदंबरम जोन आॅफ आर्क को खंभे से बांध कर जला दिया गया था। सुकरात को जहर का प्याला पीना पड़ा। सर थॉमस मोर का सिर काट दिया गया। इन सबको अपने विश्वासों की कीमत चुकानी पड़ी। हाल में हुई पांच हत्याओं नेभारत के लोगों के अंत:करण को झकझोर दिया है। मीडिया का ध्यान इस पर है कि इनमें से हरेक मामले में हत्यारा कौन था। संबंधित राज्य की पुलिस हत्यारे या हत्यारों की तलाश में जुटी हुई है। कुछ गिरफ्तारियां हुई हैं, पर किसी भी मामले की गुत्थी फिलहाल

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