कथा: अहंकार की रस्सी तोड़कर ही मिल सकते हैं भगवान के दर्शन

पौराणिक कथा के अनुसार एक गुरुदेव अपने शिष्यो को अंहकार से संबंधित शिक्षा की कहानी सुना रहे थे। उन्होनें एक नदी के बारे में बताना शुरु किया जो सदाबहार थी। उस नदी के दोनों तरफ नगर बसे हुए थे। नदी के पार महान और विशाल मंदिर था। नदी के एक तरफ राजा था जो बहुत ही अहंकारी था। राजा के एक दास था जो बहुत ही विनम्र और सज्जन स्वभाव का व्यक्ति था। एक बार राजा और दास नदी के दूसरी तरफ गए। राजा के मन में देव मंदिर देखने

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स्तंभेश्वर महादेव मंदिर: दिन में एक बार दर्शन देकर हो जाता है गायब, समुद्र खुद करता है शिवलिंग का अभिषेक

भारत के गुजरात में भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर स्थित है, जहां वह दिन में एक बार दर्शन देकर समुद्र में गायब हो जाता है। मंदिर में स्थित शिवलिंग का जलाभिषेक खुद समुद्र करता है। यह मंदिर गुजरात के वडोदरा के पास अरब सागर में स्थित है। गुजरात के भरूच जिले में स्थित यह मंदिर समुद्र की तेज लहरों में अपने आप गायब हो जाता है और कुछ देर बार खुद बाहर आ जाता है। इसका नाम स्तंभेश्वर महादेव मंदिर है। इसमें चार फुट ऊंचा और दो फुट घेरे

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Christmas Wishes: इन शानदार मैसेज, PHOTOS और SMS के जरिए दें अपने दोस्तों को क्रिसमस की बधाई

क्रिसमस का त्योहार हर साल 25 दिसंबर को पूरी दुनिया में मनाया जाता है। जीसस क्राइस्ट के जन्मदिन के मौके पर ये त्योहार मनाया जाता है और ईसाई धर्म के लोग इस धर्म को बढ़ चढ़ कर मनाते हैं। पूरी दुनिया में बने हर चर्च की इस दिन लाइटिंग लगाई जाती है। सुबह से ही लोग प्रार्थना के लिए चर्च जाना शुरू कर देते हैं। रात 12 बजे जीसस के जन्म के साथ ही लोग एक दूसरे को गले लगकर बधाई देते हैं। चर्च में आए सभी लोगों को पादरी

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धनु संक्रांति 2017: सूर्य करता है इस माह धनु राशि में प्रवेश, महाभारत से भी जुड़ा है इस दिन का महत्व

हिंदू पंचाग के अनुसार पौष माह की संक्रांति को धनु संक्रांति कहा जाता है। ज्योतिष विद्या के अनुसार माना जाता है कि इस दिन सूर्य वृश्चिक राशि से निकलकर अपने बृहस्पति ग्रह की राशि धनु में प्रवेश करता है। इस राशि को सूर्य की मित्र राशि भी कहा जाता है। दक्षिण भारत में इस दिन अधिक महत्वता होती है। इस दिन को धनुर्मास के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का महत्व होता है। धनु संक्रांति काल में सूर्य नारायण की उपासना का विशेष

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प्रदोष व्रत 2017: जानें क्यों इस दिन की जाती है भगवान शिव की उपासना, इस विधि से करें युगल जोड़े का पूजन

आज 15 दिसम्बर 2017 शुक्रवार को प्रदोष व्रत है। यह एक पाक्षिक व्रत है अर्थात प्रत्येक महिने शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष की प्रदोषकालीन त्रयोदशी तिथि को व्रत रखते हैं। स्कंदपुराण के अनुसार- त्रयोदश्यां तिथौ सायं प्रदोषः परिकीर्त्तितः । तत्र पूज्यो महादेवो नान्यो देवः फलार्थिभिः ।। प्रदोषपूजामाहात्म्यं को नु वर्णयितुं क्षमः । यत्र सर्वेऽपि विबुधास्तिष्ठंति गिरिशांतिके ।। प्रदोषसमये देवः कैलासे रजतालये । करोति नृत्यं विबुधैरभिष्टुतगुणोदयः ।। अतः पूजा जपो होमस्तत्कथास्तद्गुणस्तवः । कर्त्तव्यो नियतं मर्त्यैश्चतुर्वर्गफला र्थिभिः ।। दारिद्यतिमिरांधानां मर्त्यानां भवभीरुणाम् । भवसागरमग्नानां प्लवोऽयं पारदर्शनः ।। दुःखशोकभयार्त्तानां क्लेशनिर्वाणमिच्छताम् । प्रदोषे पार्वतीशस्य पूजनं मंगलायनम् ।।

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भगवान गणेश ने की थी सबसे पहले परिक्रमा, जानें मंदिरों में चक्कर लगाने का महत्व

मंदिर में पूजा के बाद लोग थाली और धूप लेकर पेड़ या भगवान की मूर्ति के पास चक्कर लगाते हैं। मंदिरों के साथ गुरुद्वारों में भी माथा टेकने के बाद चक्कर लगाते हैं। सूर्य को अर्घ्य देने के बाद भी लोग अपने स्थान पर गोल घूमते हैं। यहां हम बात करने जा रहे हैं कि हर मंदिर-गुरुद्वारा या अन्य किसी पवित्र स्थान पर परिक्रमा क्यों की जाती है। इस मान्यता के पीछे का कारण क्या है, भक्तों का मानना है कि इससे उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मान्यताओं के साथ

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जानें क्यों भगवान शिव की नगरी को श्रीकृष्ण ने कर दिया था सुदर्शन चक्र से भस्म

द्वापरयुग की एक पौराणिक कथा के अनुसार माना जाता है कि भगवान कृष्ण भगवान शिव की नगरी को जलाकर राख कर दिया था। मगध का राजा जरासंध बहुत शक्तिशाली और क्रूर माना जाता है। उसके पास अनेकों सैनिक और अनगिनत शस्त्र थे। इस कारण से आस-पास के सभी राज्य उससे मित्रता रखते थे। उसकी दो पुत्रियां थी जिसमें से एक का विवाह मथुरा के राजा कंस के साथ हुआ था। कंस एक पापी और दुष्ट राजा था। श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया था। अपने दामाद की मृत्यु सुनने के

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कालाष्टमी व्रत 2017: जानिए क्या है इस दिन का महत्व, क्यों रखा जाता है भैरव बाबा के लिए व्रत

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि कालाष्टमी के दिन कालभैरव का जन्म हुआ था। इसे भैरव अष्टमी के रुप में भी जाना जाता है। भैरव बाबा को भगवान शिव का रुप माना जाता है। भैरव रुप भगवान शिव का प्रचंड रुप माना जाता है। हिंदू पंचाग के अनुसार हर माह की कृष्ण पक्ष तिथि के दिन भैरव की पूजा करके इस दिन को कालाष्टमी का नाम दिया जाता है। इसी के साथ हर माह आने वाली अष्टमी के लिए कथा प्रचलित है कि इस दिन माता दुर्गा की

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घर में न हो गंगाजल तो इसका कर सकते हैं इस्तेमाल, करता है कई रोगों का नाश

हिंदू धर्म में गंगा जल को पवित्र माना जाता है, इसके साथ ही गंगा को पूजनीय माना गया है। हिंदू धर्म के साथ पूरी दुनिया में गंगा की पवित्रता प्रख्यात है। इसके जल को अमृत माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि भागीरथ मां गंगा को धरती पर लेकर आए थे। माना जाता है कि भागीरथ जी गंगा को जिस रास्ते से गंगा की धारा को हिमायल से लेकर आए थे उस मार्ग पर कई दिव्य औषधियां और वनस्पतियां पाई जाती हैं। इन्हीं कारणों से माता

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महज धागा भर नहीं है कलावा, हर समस्या के लिए बांधा जाता है अलग रंग का यह ‘रक्षासूत्र’

हिंदू धर्म में हर धार्मिक कार्य में एक लाल धागा प्रयोग किया जाता है। इस लाल धागे को कलाई में पहने जाने के कारण कलावा कहा जाता है। कलावा तीन रंगों के मेल से बना होता है, इन तीन रंगों के लिए मान्यता है कि वो ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियों का प्रतीक मानी जाती हैं। कलावे को रक्षा सूत्र भी माना जाता है, इसे धारण करने से हमारे आस-पास की नकारात्मक शक्तियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके साथ ही इस लाल धागे के लिए मान्यता है

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आखिर भगवान शिव को क्‍यों लेना पड़ा शिवलिंग का रूप, जानिए किसने दिया था ब्रह्मा को कभी न पूजे जाने का श्राप

भगवान शिव को देवों का देव कहा जाता है। हर वेद और पुराण में भगवान शिव को महाकाल और सृष्टि के निर्माता के रुप में देखा गया है लेकिन कहीं भी उनके जन्म से जुड़ी कोई बात नहीं कही गई है। भगवान शिव को निरंकार माना जाता है। निरंकार उसे कहा जाता है जिसका कोई रुप नहीं होता है। माना जाता है कि भगवान शिव ने ही सृष्टि के निर्माण के बारे में सोचा था। इसके बाद उन्होनें भगवान विष्णु को जन्म दिया। भगवान विष्णु की नाभि से ब्रह्मा जी

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चरणामृत और पंचामृत के सेवन से मिल सकती है जीवन में सफलता, जानिए क्या है इनका महत्व

हिंदू धर्म में मंदिर जाने पर और किसी भी शुभ कार्य के बाद चरणामृत या पंचामृत दिया जाता है। भक्त इसे सीधे हाथ में लेकर फिर ग्रहण करते हैं। माना जाता है कि इसे ग्रहण करने से शरीर में मौजूद नकारात्मक शक्तियां खत्म होती हैं। चरणामृत का अर्थ होता है वो जल जिससे किसी पूजनीय देव-देवी या महात्मा आदि के चरणों को धोया जाता है। हिंदू धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है। श्रद्धालु इसे माथे से लगाने के बाद ही ग्रहण करते हैं। इसी तरह पंचामृत का

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मंदिर के शिखर पर लगाया जाता है ध्वज और कलश, जानें क्या है कारण

मंदिर एक ऐसा स्थान हैं जहां पर जप साधना करने से सकारात्मक जीवन से धरती में एक विशेष दैवीय ऊर्जा उत्पन्न हो जाती है। शास्त्रों में ऐसा माना जाता है कि शब्दधनी से किसी भी स्थान पर ऊर्जा उत्पन्न की जाती है जिसे प्राण कहा जाता है। इष्ट को साकार रुप देने के बाद ही उनके सामने किया गए पूजन से पूरा क्षेत्र दिव्य ऊर्जा से भर जाता है। इसी को मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा करना कहा जाता है और इसके बाद आम जन प्रतिमा से ऊर्जा महसूस करते हैं। इसी

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गायत्री मंत्र के जाप से ठीक हो सकते हैं बड़े से बड़े रोग, जानें क्या हैं अन्य फायदे

गायत्री मंत्र का जाप हर किसी के लिए उपयोगी माना गया है। शास्त्रों में गायत्री मंत्र के लिए बताया गया है कि जीवन के सबसे कठिन समय में ये आपकी मदद कर सकता है। माना जाता है कि शक्ति को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जाप किया जाता है। विद्यार्थियों के लिए ये जप सबसे उपयोगी माना जाता है। माना जाता है कि हर दिन 108 बार इस मंत्र की माला जपने बच्चों में ऊर्जा आती है और उन्हें विद्या प्राप्त करने में आसानी होती है। यदि नौकरी

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इस मंदिर में स्थापित है हजारों साल पुराना शिवलिंग, जानिए सिर्फ शिवरात्रि पर क्यों आते हैं भक्त

भगवान शिव को देवों का देव माना जाता है, पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव सृष्टि के निर्माण के समय प्रकट हुए थे। भगवान शिव का ध्यान करने से ही एक ऐसी छवि उभरती है जिसमें वैराग है। इस छवि के हाथ में त्रिशूल, वहीं दूसरे हाथ में डमरु, गले में सांप और सिर पर त्रिपुंड चंदन लगा हुआ है। भगवान शिव अपने क्रोध के कारण विनाशकारी भी माने जाते हैं लेकिन वो नवनिर्माण के देवता माने जाते हैं। सभी देवों के ऊपर उन्हें माना जाता है। बुराई की वृद्धि

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