क्या कह रहा है प्रशासन? संभल कई मुस्लिम मतदाताओं ने लगाया पुलिस पर पिटाई का आरोप

लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण की वोटिंग के दौरान संभल में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार ज़ियाउर्रहमान बर्क़ ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने उन इलाक़ों में चुन-चुनकर सख़्ती की है जहां उनके समर्थन में मतदान हो रहा था.

हालांकि संभल प्रशासन ने इन आरोपों से इनकार किया है.

संभल में मंगलवार को वोटिंग के दौरान क्या कुछ हुआ था, ये जानने के लिए बीबीसी ने वहां कुछ स्थानीय लोगों से बात की.

शहर से क़रीब बीस किलोमीटूर दूर असमौली थानाक्षेत्र के शहबाज़पुर गांव में मेडिकल स्टोर चलाने वाले शादाब ने बताया कि “मरहम-पट्टी और दर्द की दवाइयां ख़त्म हो गई हैं. पुलिस ने वोट डाल रहे लोगों पर जम के लाठीचार्ज किया जिसके बाद बहुत बड़ी संख्या में लोग घायल हुए. वो हमारे स्टोर पर मौजूद लगभग सभी दवाइयां ख़रीदकर ले गए हैं.”

ऐसा ही हाल पास के ओवरी गांव का है. ओवरी एक मुस्लिम बहुल गांव हैं. यहां मंगलवार को मतदान शुरू होते ही बूथ पर लाइन लग गई थी.

यहां पर भी कई मुस्लिम मतदाताओं ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनकी लाठियों से पिटाई की.

ओवरी गांव के प्राथमिक स्कूल का एक वीडियो भी वायरल हुआ है जिसमें मतदाताओं की भीड़ बूथ से भागते हुए दिखाई दे रही है. पीछे पुलिसकर्मी भी दिखते हैं.

ऐसे कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं.

तीसरे चरण के मतदान के दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल के कई मुस्लिम बहुल इलाकों से रिपोर्ट आईं कि पुलिस ने कई मतदाताओं के साथ मारपीट की.

कई मुस्लिम बहुल इलाक़ों के मतदाताओं ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने उन्हें बूथ से मारपीट कर खदेड़ दिया.

इंडिया गठबंधन से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार ज़ियाउर्रहमान बर्क़ ने भी प्रशासन पर आरोप लगाया कि बेवजह मुस्लिम मतदाताओं पर सख़्ती बरती गई.

हालांकि, संभल के पुलिस प्रशासन ने इन आरोपों को खारिज किया है.

संभल के पुलिस अधीक्षक कुलदीप सिंह गुणावत ने बीबीसी से कहा, “मतदान शांतिपूर्ण रहा है, किसी को मतदान करने से नहीं रोका गया है.”

संभल में मंगलवार को क्या हुआ था?

बीबीसी ने उन गांवों का दौरा किया जहां से मतदाताओं के साथ मारपीट और बूथ से खदेड़े जाने के आरोपों से जुड़े वीडियो सामने आए थे.

यहां रहने वाले लोगों का आरोप है कि अचानक आए पुलिसबल ने बिना किसी पूछताछ के लाठीचार्ज कर दिया था. जो लोग बूथ के भीतर वोट डाल रहे थे उन्हें पीटकर बाहर निकाल दिया.

पुलिस प्रशासन इन आरोपों को खारिज करता है.

संभल के पुलिस अधीक्षक कुलदीप सिंह गुणावत ने बीबीसी से कहा, “स्कूल के अंदर कुछ लोग थे जिनको बाहर निकाला गया है क्योंकि वहां भगदड़ जैसी मची थी. जब स्थिति सामान्य हुई तो लोगों ने फिर से वोटिंग की है, किसी को भी वोट डालने से नहीं रोका गया है.”

लेकिन हमने जहां दौरा किया वहां कई लोगों के जिस्म पर चोटों के निशान नज़र आए.

ओवरी गांव का एक वीडियो सामने आया है जिसमें एक घायल बुज़ुर्ग सड़क पर पड़े हैं और पीछे कुछ पुलिसकर्मी खड़े हैं.

ये क़रीब 80 साल के रईस अहमद हैं.

रईस घर से अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने निकले थे, लेकिन वो कहते हैं कि पुलिस की पिटाई से उन्हें इतनी चोटें आईं कि वो खुद वापस ना लौट सके. उन्हें उठा कर घर लाना पड़ा.

रईस अहमद के साथ उनके बेटे मोहम्मद आलम भी वोट डालने आए थे. उनके आरोप हैं कि पुलिस ने उनके साथ भी मारपीट की.

मोहम्मद आलम पीएसी में सिपाही हैं और छुट्टी पर गांव आए हुए थे.

मोहम्मद आलम कहते हैं, “पुलिस ने अचानक पीटना शूरू कर दिया. मैं दुहाई देता रहा कि मैं भी पुलिस बल में हूं लेकिन किसी ने मेरी एक ना सुनी, मुझे ज़बरदस्ती गाड़ी में बिठाकर थाने ले जाने लगे. मेरी मां और बहन मुझे बचाने आए तो उन्हें भी मेरे सामने पीटा गया.”

आलम कहते हैं, “मेरे पिता बेहोश पड़े थे, पुलिस मुझे ज़बरदस्ती ले जा रही थी, मेरी मां और बहन को पीटा गया और जब मेरा भाई मोहम्मद मुस्तकीम बचाने आया तो उसे भी बुरी तरह पीटा गया.”

आलम का आरोप है कि पुलिस मुस्तकीम को अपने साथ गाड़ी में बिठाकर थाने ले गई थी और शाम को बयान दर्ज कर उसे छोड़ा गया.

आरोप है कि मुस्तकीम के साथ भी थाने में मारपीट की गई. हालांकि पुलिस ने इन सभी आरोपों को खारिज किया है.

मीडिया में जारी एक बयान में पुलिस की तरफ़ से कहा गया कि, “मतदान के दौरान शांति भंग करने वाले क़रीब पचास लोगों को अलग-अलग जगहों से हिरासत में लिया गया था.”

रईस अहमद और उनके परिवार ने भी ये आरोप लगाया है कि पुलिस ने पीटते हुए ये कहा था कि “यहां साइकिल नहीं चलने देंगे…”

साइकिल समाजवादी पार्टी का चुनाव चिह्न है.

प्रशासन का आरोपों से इनकार

बीबीसी ने जब संभल के निर्वाचन अधिकारी और ज़िलाधिकारी मनीष बंसल से इन आरोपों पर उनका पक्ष जानना चाहा तो कोई जवाब नहीं मिला.

इससे पहले ज़िलाधिकारी ने बीबीसी से कहा था कि ज़िले में मतदान शांतिपूर्ण चल रहा है.

देर शाम थाने से छूटकर आए रईस के बेटे मुस्तकीम कहते हैं, “पुलिस ने मुझे ये बयान देने के लिए मजबूर किया कि मैं बूथ के पास गुंडागर्दी कर रहा था, जबकि सच ये है कि हम वोट डालने के लिए लाइन में लगे थे.”

इस घटनाक्रम के बावजूद रईस के परिवार के अधिकतर लोगों ने बाद में अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. हालांकि उनकी पत्नी कुलसुम घायल होने की वजह से वोट नहीं डाल पाईं.

ऐसी ही आपबीती शहबाज़पुर गांव के लोगों की है. शहबाज़पुर गांव में शाम ढलने के बाद भी घरों से चांदी कूटने की आवाज़ आ रही है. इस मुस्लिम बहुल गांव में अधिकतर लोग चांदी कूटकर अपना जीवनयापन करते हैं.

यहां भी कई लोग ये दावा करते हैं कि वोट डालने के दौरान पुलिस ने उन्हें पीटा. लीवर की बीमारी के मरीज़ मोहम्मद अनीस पलंग पर लेटे हैं.