पश्चिम की तरफ देखने की प्रवृत्ति

सौ वर्षों की औपनिवेशिक गुलामी का सांस्कृतिक असर सर्वाधिक गहरा पड़ा है। राजनीतिक गुलामी से तो हम सत्तर साल पहले मुक्त हो गए, पर सांस्कृतिक गुलामी की निरंतरता बनी हुई है। आज भी भारतीय बुद्धिजीवियों और साहित्यकारों में अपने देश के साहित्य, संस्कृति और इतिहास को पश्चिमी नजरिए से देखने की प्रवृत्ति हावी है। हद तो तब हो जाती है जब पश्चिम में लिखे गए साहित्य और उस साहित्य के आधार पर विकसित साहित्य-सिद्धांतों के निकष पर भारतीय साहित्य को कसा जाता है। यह प्रवृत्ति अन्य भारतीय भाषाओं में कम
» Read more