कथित बाबा के आश्रम में बेटियों को लेने आए अभिभावक लौट रहे निराश, बेटियों के बिना जा रहे वापस

दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर छापेमारी कर नाबालिग लड़कियों को छुड़ाने के बाद से रोहिणी स्थित आध्यात्मिक ईश्वरीय विश्वविद्यालय में अभिभावकों के आने का तांता लगा हुआ है। लेकिन अभिभावक अपनी बालिग लड़कियों को वापस ले जाने में नाकामयाब हैं। रविवार को लखनऊ से आया एक ऐसा ही निराश परिवार अपनी शिकायत प्रधानमंत्री तक पहुंचाने पर विचार कर रहा है। यह परिवार पिछले एक साल में तीन बार यहां का चक्कर लगा चुका है। वहीं आसपास के लोगों का कहना है कि यह तो हर महीने की कहानी है, परिवार आते हैं, रोते-चिल्लाते हैं और निराश वापस लौट जाते हैं। आश्रम के मुख्यद्वार पर एक तख्ती टंगी है, जिस पर लिखे अजीबोगरीब संदेश का लब्बोलुआब है ‘अखबार में निंदा होगी लेकिन उसकी परवाह नहीं करना है’ शायद भक्त लड़कियों की आस्था के पीछे यही संदेश काम कर रहा है।

राजस्थान पुलिस को भी लौटना पड़ा बैरंग
रविवार को ही मध्यप्रदेश और राजस्थान से भी अभिभावक अपनी लड़कियों को वापस ले जान पर निराश रहे। शनिवार को भी झुंझुनू, राजस्थान से एक परिवार की शिकायत पर राजस्थान पुलिस वहां आई लेकिन उसे भी बैरंग वापस लौटना पड़ा। साथ आए परिवार ने स्थानीय पुलिस पर असहयोग का आरोप लगाया। बाहर से काफी रहस्यमयी लगता है तहखानों वाला ईश्वरीय विश्वविद्यालय रोहिणी के विजय विहार फेज-1 के पॉकेट ए के प्लॉट नं 346, 349-351-351 पर स्थिति चार मंजिला ‘शिव शक्ति भवन’ बाहर से ही काफी रहस्यमयी नजर आती है। भवन की खिड़कियों को देखकर लगता है शायद सालों से नहीं खोला गया है। एक बड़ा गेट है जिसमें जाली लगी है। उसमें एक छोटा गेट और बना है। आसपास के लोगों ने बताया कि पहले ज्यादातर अभिभावकों को जाली के झरोखे से ही बात करवाया जाता था लेकिन छापेमारी के बाद पुलिस के साथ अभिभावकों को अंदर जाने दिया जा रहा है। प्रवेश के लिए केवल छोटा सा गेट खुलता है वह भी आधा।

बुजुर्ग से आठ साल पहले हुई थी बाबा से मुलाकात
अंदर से बाहर निकली सफेद साड़ी में लिपटी एक बुजुर्ग महिला ने बताया कि वह यहीं पास में रहती हैं और पिछले 15 सालों से यहां ‘ज्ञान’ सुनने को आती हैं। इसके अतिरिक्त उन्हें कुछ पता नहीं। भवन के पीछे की बिल्डिंग के पार्किंग स्पेस से झांकती महिला शशिबाला ने बताया वह पिछले 20 सालों से हर दिन सुबह साढ़े छह बजे डेढ़ घंटे के लिए आश्रम में जाती हैं लेकिन कभी कुछ गलत नहीं हुआ। वृद्धा के अनुसार यह सब झूठा दुष्प्रचार है। शशिबाला ने बताया कि वह बाबा को बड़ा भाई कहती हैं और 8 साल पहले मिली है लेकिन उसके बाद बाबा का यहां आना नहीं हुआ।

रो-धोकर निराश लौटने को मजबूर लड़कियों के अभिभावक
आध्यात्मिक ईश्वरीय विश्वविद्यालय के ठीक सामने अपने पति और बच्चे के साथ पिछले पांच साल से रह रही महिला से बातचीत में पता चला कि पुलिस को छोड़ हर महीने यहां यही नजारा है। मां-बाप आते हैं और रो-धो कर निराश वापस चले जाते हैं। महिला ने कहा हमें तो गाड़ियां, ड्राइवर, कंडक्टर और हेल्पर ही ज्यादातर निकलते दिखते हैं, लड़कियां ऐसे बाहर नहीं निकलतीं, बल्कि गाड़ियों में आठ-दस की संख्या में दिख जाती हैं।

रात 12 से 3 बजे आते हैं लोग, मगर कीर्तन से इनकार
बड़ा गेट कभी नहीं खुलता। वहीं थोड़ी दूर खड़े स्त्रियों और पुरुषों के समूह ने कहा यहां दिन में कोई आता-जाता तो दिखता नहीं, लेकिन रात में 12 से 3 के बीच गाड़ियां आती जाती हैं। उन्होंने कभी किसी भजन कीर्तन या प्रवचन की आवाज से इंकार किया। महिलाओं के आश्रम की बगल की गली में पुरुषों का आश्रम भी है। जहां 150 से 120 लड़कियां रहती हैं। आसपास के लोगों का कहना है कि आश्रम को लगभग 30 साल हो गए। कई बार संदेहजनक गतिविधियों के कारण पुलिस शिकायत भी की गई है लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। गौरतलब है कि दिल्ली सहित देश के अन्य हिस्सों में तथाकथित बाबा के आश्रम पर छापेमारी चल रही है।

आश्रम से जाने को तैयार नहीं लड़कियां
लवली (बदला हुआ नाम) ने पिछले साल ही उत्तर प्रदेश का प्री-मेडिकल टेस्ट पास किया था। वह पांच साल की पढ़ाई के बाद डॉक्टर बन जाती लेकिन इसके पहले ही वह 9 मई 2016 को घर में बिना बताए लखनऊ से दिल्ली के रोहिणी स्थित आध्यात्मिक विश्वविद्यालय आ गई। रविवार को अपनी बेटी को घर ले जाने रोहिणी आश्रम आए लेकिन लवली के मां-बाप उसे समझाने में असफल रहे। पुलिस की निगरानी और आश्रम के लोगों के बीच उन्हें बेटी से तो मिलने दिया गया लेकिन वह अकेले में बेटी से बात नहीं कर सके। लवली की मौसी भी साथ आईं थी। जिन्होंने बताया कि कैसे 21 साल की पढ़ी लिखी आधुनिक लड़की का मतिभ्रम (बे्रनवॉश) कर दिया गया है। सफेद शॉल और गुलाबी साड़ी में वह उम्र से दोगुनी लग रही थी। उन्होंने कहा कि यह जगह कहीं से आश्रम नहीं लगती बल्कि छावनी लगती है। अंदर सूरज की रोशनी भी नहीं जा सकती। लवली की मां ने बताया, ‘वह पढ़ने लिखने से लेकर घर के कामकाज सब में निपुण थी लेकिन अपने ममेरे भाई के बहकावे में वह लखनऊ के इंदिरा नगर स्थित आध्यात्मिक विश्वविद्यालय शाखा में जाती रही और उसके बाद यहां आ गई। फोन पर बातचीत में लड़की हमेशा कहती है कि वह यहां खुश है’। लड़की का पूरा परिवार पढ़ा लिखा है पिता इंजीनियर हैं, बहन डॉक्टर। परिवार अब अपनी गुहार प्रधानमंत्री के पास ले जाने की तैयारी में है।

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