राष्‍ट्रपति ने टीपू सुल्‍तान को बताया अंग्रेजों के ख‍िलाफ लड़ते हुए मरने वाला योद्धा, केंद्रीय मंत्री ने कहा था बलात्‍कारी

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बुधवार (25 अक्टूबर) को कर्नाटक विधानसभा को संबोधित करते हुए कहा कि टीपू सुल्तान अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ते हुए शहीद होना वाले योद्धा हैं। उन्होंने मैसूर रॉकेट के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया और युद्ध के दौरान इनका बेहतरीन इस्तेमाल किया।’ कर्नाटक विधानसभा और विधान परिषद की 60वीं वर्षगांठ पर संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने ये बात कही। राष्ट्रपति के बयान के बाद भी भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने टीपू सुल्तान को हत्याया करार दिया है।

गौरतलब है कि बीते दिनों 18वीं सदी में मैसूर के बादशाह की जयंती मनाने पर तब विवाद हो गया जब केंद्रीय मंत्री ने उन्हें ‘मास रेपिस्ट’ कहा था। केंद्रीय कौशल विकास राज्य मंत्री अनंत कुमार ने ना सिर्फ कार्यक्रम में शामिल होने स इनकार दिया बल्कि कर्नाटक सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को पत्र लिखकर इस आयोजन में उन्हें भी शामिल नहीं करने को कहा। इसके साथ ही हेगड़े ने टीपू सुल्तान को बर्बर, निरंकुश और मास रेपिस्ट करार दिया। हेगड़े ने कर्नाटक के अधिकारियों को लिखे पत्र की कॉपी ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा, ‘मैंने कर्नाटक सरकार को एक ऐसे बर्बर हत्यारे, कट्टरपंथी और मास रेपिस्ट का महिमामंडन के लिए आयोजित होने वाली जयंती कार्यक्रम में मुझे नहीं बुलाने के बारे में बता दिया है।’

केंद्रीय मत्री के इस बयान पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उनकी आलोचना करते हुए कहा है कि केंद्रीय मंत्री होने के नाते उन्हें इस तरह की टिप्पणी और पत्र नहीं लिखना चाहिए था। उन्होंने बताया कि टीपू सुल्तान जयंती कार्यक्रम में राज्य के सभी मंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों और अन्य गणमान्यों को पत्र भेजा जाता है, समारोह में शामिल होना या न होना उनकी मर्जी पर निर्भर करता है। सीएम सिद्धारमैया ने कहा कि इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ टीपू सुल्तान ने चार युद्ध लड़े थे।

जानकारी के लिए बता दें कि सरकार ने 10 नवंबर को टीपू सुल्तान की जयंती का आयोजन किया है। कर्नाटक सरकार साल 2015 से टीपू सुल्तान की जयंती मना रही है। उस साल भी इसका जमकर विरोध हुआ था। टीपू सुल्तान 18वीं सदी में मैसूर साम्राज्य के शासक थे। उनके शासनकाल पर शिक्षाविदों, इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों के बीच मतभेद रहे हैं।

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