मणिकर्णिका घाट के निर्माण को लेकर प्रसंग है बड़े ही प्रसिद्ध, जानें इसके निर्माण से लेकर इसकी महत्ता

बनारस के मणिकर्णिका घाट को मुक्ति का मार्ग बताया गया है। कहा जाता है कि मणिकर्णिका घाट पर चिता का जलना सौभाग्य की बात होती है। कहते हैं कि मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मणिकर्णिका घाट का आलम यह है कि यहां पर सदा शव दहन चल रहा होता है। इस घाट पर जलती आग बुझने का नाम ही नहीं लेती है। दूसरी तरफ, मणिकर्णिका घाट के निर्माण को लेकर कई सारे प्रसंग बड़े ही प्रसिद्ध हैं। आज हम इन्हीं कुछ प्रसंगों के बारे में जानेंगे। इनमें मणिकर्णिका घाट के निर्माण से लेकर इसकी महत्ता के बारे में बड़े ही स्पष्ट तरीके से बताया गया है।

एक प्रसंग के मुताबिक, पार्वती जी का कर्ण फूल इसी स्थान पर एक कुंड में गिर गया था। भगवान शंकर ने तमाम मुश्किलों के बावजदू इसे ढूढ़कर निकाला था। ऐसा कहा जाता है कि तभी से इस स्थान का नाम मणिकर्णिका पड़ गया। कहा यह भी जाता है कि कर्णफूल माता ने पार्वती के कर्ण फूल को यहां जानबूझकर छिपा दिया था। दरअसल कर्णफूल चाहती थीं कि शिव जी अधिक समय पर यहां रुकें। और इस जगह को देव आगमन से पुण्य मिले।

मालूम हो कि मणिकर्णिका घाट को महाश्मशान भी कहा जाता है। एक अन्य प्रंसग के मुताबिक, शिव जी ने इसी स्थान पर पार्वती जी के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया था। इस वजह से मणिकर्णिका घाट को महाश्मशान का दर्जा प्राप्त हुआ। एक अन्य प्रसंग की मानें तो विष्णु जी ने शिव की तपस्या करते हुए अपने सुदर्शन चक्र से यहां एक कुंड खोदा था। शिव जी उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए। शिव के आने पर विष्णु के कान की मणिकर्णिका उस कुंड में गिर गई। इसके बाद ही इसे मणिकर्णिका घाट कहा जाने लगा।

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