उत्तराखंड में अपने उद्गम पर ही मैली हो अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रही मोक्षदायिनी गंगा

मोक्ष के लिए गंगा स्नान सबसे उपयुक्त माना जाता था। परंतु कुछ सालों से विकास के नाम पर गंगा नदी को कूड़ादान बना दिया गया और गोमुख से लेकर गंगासागर तक मानव मल-मूत्र, घरों का कचरा और सैकड़ों कारखानों का गंदा पानी सब गंगा में डाला जा रहा है। लिहाजा, गंगा का पानी आचमन तथा स्नान के लायक तक नहीं रहा है। मोक्षदायिनी गंगा आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रही है और वह अपने मायके उत्तराखंड में ही मैली हो रही है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने
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