जन की बात- राहुल राग

अमेरिका की धरती पर राहुल की वंशवाद पर की गई टिप्पणी पर भाजपा के बड़े से लेकर छोटे नेता लगातार बयानबाजी कर रहे हैं तो राहुल के बयानों पर बात करने की जरूरत समझी जा सकती है। राजनीति में सपने दिखाने के साथ सच का सामना की भी अहमियत होती है। अहंकार और रोजगार पर राहुल जिस कांग्रेसी नाकामी की स्वीकारोक्ति की भाषा बोल रहे हैं वह उन्हें एक नए अवतार में ला रही है। अमेरिकी शैक्षणिक संस्थान में वे अच्छे वक्ता के साथ अच्छे श्रोता की भी जरूरत बताते

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याद हमारी आएगीः खोटे का खरापन

अमर ज्योति’ की सौदामिनी, ‘मुगले आजम’ की जोधाबाई, ‘बॉबी’ की मिसेज ब्रिगेंजा या ‘बिदाई’ की पार्वती को भला कौन भूल सकता है। महज 26 साल की थीं वे, जब उनके पति का निधन हो गया। अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि पति के निधन के बाद अगर उनकी किसी ने मदद की तो वह थी उनकी पढ़ाई-लिखाई। दुर्गा का परंपराभंजक तेवर उस दौर में कलाकार मासिक तनख्वाह पर काम करते थे। प्रभात, न्यू थियेटर्स, प्रकाश पिक्चर्स, ईस्ट इंडिया फिल्म कंपनी जैसे कई स्टूडियो फिल्में बनाते थे। कोई कलाकार

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…जब ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया बनवाने के लिए 50 किलो घी और 100 किलो रुई से जलाए गए थे चिराग

ग्रेट वॉल ऑफ चाइना के बारे में दुनिया जानती है। लेकिन आज बात ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया की करेंगे। राजस्थान के राजसमंद जिले में कुंभलगढ़ नाम की जगह है। यह मेवाड़ के राजा रहे महाराणा प्रताप का जन्मस्थान है। यहीं पर कुंभलगढ़ का किला है, जिसकी परिधि में दीवारें है। यही ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर है। ग्रेट वॉल ऑफ चाइन के बाद दुनिया में यह दूसरी सबसे बड़ी दीवार है। साल 1443 के आसपास की बात है। कुंभलगढ़ के महाराज राणा कुंभा तब किले की सुरक्षा

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घृणाभाषा बनाम रचनात्मक भाषा

एक हैं ‘एंटीफा’। दूसरे हैं ‘प्रोफा’ या ‘नियोनाजी’! ‘एंटीफा’ यानी ‘एंटी फासिस्ट’ या ‘फासिस्ट विरोधी समूह’ और ‘प्रोफा’ यानी ‘प्रोफासिस्ट’ या ‘नियोनाजी समूह’! ट्रंप के सत्ता में आने के बाद अमेरिका में ‘प्रोफाओं’ का हौसला बढ़ा है। वे अमेरिका को एक ‘बहुलतावादी राष्ट्र’ की तरह नहीं देखते बल्कि उसे ‘ठीक कर’ उस पर ‘गोरी जाति’ का एकछत्र आधिपत्य चाहते हैं। वे गोरों को श्रेष्ठ और सर्वोपरि मानते हैं। जिस तरह कभी हिटलर ने जर्मनों की ‘आर्यंस’ की श्रेष्ठता का दावा किया था और नस्ली श्रेष्ठता का भाव भरकर उनको विश्व

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अमन के रास्ते

हर तरफ सवाल हैं, लेकिन जवाब कुछ सूझ नहीं रहा। जिन्हें जवाब देने की जिम्मेदारियां मिली हैं, उनकी खामोशी समझ में नहीं आती। ये हकीकत है आज के दौर के हमारे भारत की, जहां देश का आम नागरिक हर तरह की राजनीतिक उठापटक से दूर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी चलाने और दो जून की रोटी जुटाने में सब कुछ फरामोश किए बैठा है। दूसरी ओर, देश के नौजवानों का एक बड़ा तबका सोशल मीडिया के सहारे साजिशों के चंगुल में फंस कर नफरतों को बढ़ावा देने में जोर-शोर से लगा

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जातिगत संघर्ष: अतुल्य भारत पर एक दाग

प्राचीन वैदिक समाज को श्रम विभाजन तथा सामाजिक जिम्मेदारियों के तहत चार वर्णों में विभाजित किया गया था। कालांतर में इनसे लाखों जातियां बन गईं। प्राचीन वर्ण व्यवस्था का सही या गलत होना हमेशा से विवादित रहा है, परंतु इसमे कोई शक नही है कि पिछले कुछ सौ वर्षों से जातिगत व्यवस्था के नकारात्मक परिणामों को इस समाज ने देखा और महसूस किया और इस प्रकार जातिगत व्यवस्था के खिलाफ लोगों के मन मे दृढ़ता बढ़ती गई। आज़ादी के बाद संविधान निर्माण के समय जातिगत व्यवस्था को मिटाने के प्रयास

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एक किंवदंती का जाना

मार्शल अर्जन सिंह का नाम ऐसे लोगों में शामिल हो चुका है, जो जीते जी किंवदंती बन जाते हैं। वे उस त्रयी में गिने जाते हैं, जिनमें जनरल करियप्पा और फील्ड मार्शल मानेकशॉ का नाम लिया जाता है। अट्ठानबे साल की उम्र में रविवार को उन्होंने अंतिम सांस ले ली। उन्नीस सौ पैंसठ के भारत-पाक युद्ध के महानायकों में शुमार किए जाने वाले मार्शल अर्जन सिंह का सोमवार को संपूर्ण राजकीय सम्मान के साथ दिल्ली में अंतिम संस्कार किया गया। उन्हें इक्कीस तोपों की सलामी दी गई, जो कि किसी

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पब्‍ल‍िक पर भारी VIP: 3 जवान कर रहे एक वीआईपी की सुरक्षा, जबक‍ि 663 आम लोगों पर एक

देश में वीआईपी कल्चर आज भी आम लोगों पर भारी पड़ती नजर आ रही हैं। हालांकि, देश के नेता वीआईपी कल्चर खत्म करने का वादा करते हैं, लेकिन असलियत कुछ और ही है। सामने आए ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश के करीब 20 हजार वीआईपी लोगों की सुरक्षा के लिए प्रत्येक के लिए 3 पुलिसकर्मी तैनात हैं। जबकि आम लोगों के लिए तैनात पुलिसकर्मियों की संख्या बहुत कम है। ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डवलपमेंट के आंकडों के मुताबिक पूरे देश में 19.26 लाख पुलिस अधिकारी हैं, जिनमें से 56,944

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हिमालय की पीर

हिमालय आकार में जितना विराट है, अपनी विशेषताओं के कारण उतना ही अद्भुत भी। कल्पना करें कि अगर हिमालय न होता तो दुनिया और खासकर एशिया का राजनीतिक भूगोल क्या होता? एशिया का ऋतुचक्र क्या होता? किस तरह की जनसांख्यकी होती और किस तरह के शासनतंत्रों में बंधे कितने देश होते? विश्वविजय के जुनून में दुनिया के आक्रांता भारत को किस कदर रौंदते? न गंगा होती, न सिंधु होती और न ही ब्रह्मपुत्र जैसी महानदियां होतीं। फिर तो संसार की महानतम संस्कृतियों में से एक सिंधु घाटी की सभ्यता भी

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जानिए क्यों Samuel Johnson को कहा जाता था “फादर ऑफ द मॉडर्न डिक्शनरी”

सैम्यूअल जॉनसन का जन्म 18 सितंबर, 1709 को इंग्लैंड के लंदन में हुआ था।सैम्यूअल जॉनसन को लोग अक्सर प्यार से डॉक्टर जॉनसन और फादर ऑफ द मॉडर्न डिक्शनरी के नाम से बुलाना पसंद करते थे। एक कवि, निबंधकार, नैतिकतावादी, साहित्यकार आलोचक, जीवनीकार, संपादक और शब्दालेखक के रूप में जॉनसन का इंग्लिश लिट्रेचर में काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 1750 में जॉनसन ने व्यापक अंग्रेजी डिक्शनरी का निर्माण किया था जिसे 1755 में पब्लिश किया गया था। इसी कारण उन्हें फादर ऑफ द मॉडर्न डिक्शनरी कहा जाता था। यह पहली ऐसी डिक्शनरी

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PHOTOS: जाते-जाते अपने पीछे ये यादें छोड़ गए एयरफोर्स के इकलौते फाइव स्टार मार्शल अर्जन सिंह

भारतीय वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह का 98 साल की उम्र में 16 सितंबर को निधन हो गया है। एयरफोर्स फाइव स्टार रैंक वाले मार्शल सिंह एकलौते ऑफीसर थे। जैसा सेना का अनुशासन उनके अंदर भरा था वैसे अब तक शायद किसी सेनानायक में न हो। भारत 1965 के युद्ध में मार्शल अर्जन सिंह का शानदार नेतृत्व कभी नहीं भूलेगा, वह हमेशा याद आएंगे। सिंह भले ही इस दुनिया से रुक्शत हो गए हैं लेकिन वे अपने पीछे न जाने कितनी ही यादें छोड़ गए हैं। देखिए सिंह की

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मकबूल फिदा हुसेन

एमएफ हुसेन- जन्म: 17 सितंबर 1915 निधन: 9 जून 2011 दुनिया के महान चित्रकारों में से एक थे मकबूल फिदा हुसेन। वे एमएफ हुसेन के नाम से मशहूर हैं। ‘भारत का पिकासो’ कहे जाने वाले हुसेन का जन्म 17 सितंबर, 1915 को महाराष्ट्र के पंढरपुर गांव में एक सुलेमानी बोहरा परिवार में हुआ था। यह परिवार मूल रूप से गुजरात का रहना वाला था। हुसेन के बचपन में ही उनकी मां चल बसी थीं। इसके बाद उनके पिता इंदौर चले गए। वहीं हुसेन की प्रारंभिक शिक्षा हुई। बड़ोदरा में एक

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कहानीः मां मुझे वापस मत भेजो

रामदरश मिश्र मुझे ससुराल वापस मत भेजो।’ उषा बार-बार मां के आगे घिघिया रही थी। ‘वे सब मुझे मार डालेंगे।’ ‘नहीं बेटी ऐसा नहीं कहते। पीहर ससुराल में तो थोड़ा फर्क होता ही है। ससुराल नई जगह होती है, नए लोगों के बीच होना होता है। तो वहां पीहर जैसा जीवन नहीं रहता। वहां कुछ नई समस्याएं झेलनी पड़ती हैं, पर धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो जाता है। आखिर लड़की का असली घर तो ससुराल ही है न।’ मां प्रतिभा उसे समझातीं। ‘मां तुम जैसा समझ रही हो वैसा नहीं

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भविष्य की भाषा

हिंदी के बारे में या उसके विरोध में जब भी कोई हलचल होती है, तो राजनीति का मुखौटा ओढ़े रहने वाले भाषा-व्यवसायी बेनकाब होने लगते हैं। उनकी बेचैनी समझ में तो आती है, पर हंसी इस बात पर आती है कि संविधान का नाम बार-बार रटने और संविधान की कसम खाने के बाद भी यह गोलबंदी या अविश्वास का माहौल बनता क्यों है। यहां हम केवल एक ही प्रावधान को याद करें। संविधान के अनुच्छेद 351 में हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश देते हुए स्पष्ट कहा गया है

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दिल ढूंड़ता है…

करीब एक दशक पहले तक लगभग सभी बड़े शहरों में साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों के बैठने के अड्डे हुआ करते थे, जहां वे शाम को या फुरसत के क्षणों में बैठ कर देश-दुनिया के तमाम मसलों पर बहसते-बतियाते, कुछ नया रचने की ऊर्जा पाते रहते थे। इन अड्डों में टी हाउस और कॉफी हाउस प्रमुख थे। मगर अब वे अड्डे उजड़ते गए हैं। अब नए रचनाकार, संस्कृतिकर्मी इन अड्डों का रुख नहीं करते। इनकी जगह अब जो नए अड्डे बन रहे हैं या बन गए हैं, उनकी आबो-हवा अलग है। वहां कॉफी हाउस

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