हाईकोर्ट की वैवाहिक जीवन पर महत्वपूर्ण टिप्पणी: शादी का मतलब यह नहीं कि पति को शरीर सौंप दिया

प्रीतम पाल सिंह 

मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक जीवन को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि शादी का मतलब यह नहीं कि कोई महिला शारीरिक संबंध बनाने के लिए हमेशा राजी हो और उसने अपना शरीर पति को सौंप दिया है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि जरूरी नहीं कि बलात्कार के लिए बल प्रयोग ही किया गया हो। यह किसी भी तरह से दबाव बनाकर हो सकता है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायाधीश सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि शादी जैसे रिश्ते में पुरूष और महिला दोनों को शारीरिक संबंध के लिए ‘न’ कहने का अधिकार है।

कोर्ट ने पुरूषों के द्वारा संचालित एक एनजीओ के द्वारा दायर याचिक की सुनवाई की। एनजीओ वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध बनाने वाली याचिका का विरोध कर रहा है। याचिका में बताया गया कि शादी शुदा महिला को मौजूदा कानूनों के तहत यौन हिंसा से संरक्षण मिला हुआ है।एनजीओ ने दावा किया कि यौन उत्पीड़न में बल या खतरे का उपयोग महत्वपूर्ण अपराध हैं। इस पर अदालत ने कहा कि बलात्कार एक बलात्कार है। क्या यह है कि यदि आप विवाहित हैं, तो यह ठीक है लेकिन यदि आप नहीं हैं, तो यह बलात्कार है? आईपीसी के 375 के तहत इसे अपवाद क्यों होना चाहिए? बल बलात्कार के लिए एक पूर्व शर्त नहीं है। धारा 375 के अपवाद में कहा गया है कि एक व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ जिसकी उम्र 15 साल से कम नहीं है, संबंध बनाना बलात्कार नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि इन दिनों बलात्कार की परिभाषा बदल गई है। पति के द्वारा बलात्कार में यह जरूरी नहीं है कि इसके लिए बल प्रयोग किया जाए। यह आर्थिक जरूरत, बच्चों और घर की अन्य जरूरतों के नाम पर दबाव बनाकर भी किया जा सकता है। यदि महिला ऐसे आराेप लगाकर अपने पति के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज कराती है तो क्या होगा? मामले में दलीलें अभी पूरी नहीं हुई है। आठ अगस्त को इसकी अगली सुनवाई हाेगी।

बता दें कि अदालत में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग की गई थी। इसका विरोध एनजीओ मेन कल्याण ट्रस्ट द्वारा किया गया, जिसमें दावा किया गया था कि उसकी पत्नी के साथ एक व्यक्ति द्वारा संंबंध बनाना बलात्कार नहीं है। यह असंवैधानिक नहीं है। खंडपीठ ने ट्रस्ट के प्रतिनिधियों के समक्ष विभिन्न प्रश्न उठाए, जिन्होंने इस मामले में हस्तक्षेप किया था और पूछा कि क्या उनका कहना है कि पति अपनी पत्नी पर संबंध के लिए दबाव डाल सकता है? इसके जवाब में एनजीओ ने नकारात्मक जवाब दिया और कहा कि घरेलू हिंसा कानून, विवाहित महिला को अपमानजनक, अप्राकृतिक सेक्स, जो पति द्वारा यौन उत्पीड़न के खिलाफ पत्नी को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करता है। हालांकि, पतियों को ऐसी कोई सुरक्षा नहीं दी जाती है क्योंकि भारत में कानून लिंग विशिष्ट हैं। दुनिया के अधिकांश हिस्सों के विपरीत है। वहीं, केंद्र ने भी मुख्य याचिकाओं का विरोध किया है कि वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक अपराध नहीं बनाया जा सकता क्योंकि यह ऐसी घटना बन सकती है जो विवाह संस्था को अस्थिर कर सकती है और पतियों को परेशान करने के लिए एक आसान साधन बन सकती है।

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