108 साल की हुई ट्राउट मछली

देश में सबसे स्वादिष्ट मछलियों में से एक ट्राउट हिमाचल प्रदेश में सौ साल से अधिक की हो गई है। पहाड़ी राज्यों की नदियों व खड्डों के बर्फीले पानी में 12 से 19 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की बीच पलने बढ़ने वाली ट्राउट मछली में प्रोटीन अधिक व फैट कम होने के कारण इसे ह्रदयरोगियों के लिए वरदान माना जाता है। करीब सौ साल पहले 1909 में कुल्लू में तैनात रहे अंग्रेज अफसर जीसीएल हावल अपने साथ ट्राउट मछली के अंडे लाए थे और उन्होंने इसे कुल्लू कटरार्इं के पास ब्यास नदी किनारे मैहली हैचरी (मत्स्य बीज प्रजनन केंद्र) में डाला था। उसके बाद इस मछली को प्रदेश की कई नदियों में डाला गया और इसका उत्पादन शुरू हुआ।विशेषज्ञों के अनुसार 1947 में जब प्रदेश में भारी बाढ़ आई थी तो इस बाढ़ के साथ आए मलबे ने इसका बीज नष्ट कर दिया था। उसके बाद जम्मू कश्मीर से ट्राउट का बीज मंगवाकर इसे यहां की नदियों में डाला गया। इस समय प्रदेश में रेनबो और ब्राउन प्रजाति की ट्राउट मछली पैदा हो रही हैं।
मंडी की उहल, कांगड़ा की लंबा डग, शिमला रोहड़ू की पब्बर, चंबा की अपर रावी, कुल्लू की सैंज, अपर ब्यास, तीर्थन व पार्वती व किन्नौर की वास्पा नदी में ब्राउन ट्राउट पैदा हो रही हैं। वहीं बड़े स्तर पर कुल्लू, मनाली, जंजैहली, बरोट, बठाहड़, रोहड़ू व सांगला आदि में फार्मों में भी ब्राउन के साथ-साथ रेनबो प्रजाति की मछली पैदा की जा रही है। इसके अलावा मत्स्य विभाग के भी कटरार्इं कुल्लू व मंडी के बरोट में दो बड़े फार्म इस मछली के बीज पैदा कर रहे हैं जिसमें नदियों व खड्डों में डाला जाता है ताकि कुदरती तौर पर इसकी पैदावार बढ़े। विशेषज्ञों के अनुसार ब्राउन ट्राउट तो अब यहां के पानी में पलने की आदी हो गई है और इसका कुदरती तौर पर उत्पादन हो रहा है। हिमाचल के इन ऊपरी जिलों की ठंडे बर्फानी पानी वाली नदियों व खड्डों के पानी से बनाए गए फार्मों में पैदा हो रही इस ट्राउट की महानगरों में बेहद मांग है। 250 रुपए प्रति किलो तक ट्राउट यहां बिकती है ओर इसकी मांग लगातार बढ़ रही है।

हिमाचल में और बढ़ेगा ट्राउट का उत्पादन
मंडी स्थित मत्स्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि देश भर में खास कर दिल्ली, मुंबई व दूसरे महानगरों में लगातार बढ़ रही हिमाचली ट्राउट मछली की मांग को देखते हुए इसका उत्पादन और अधिक बढ़ाने की कोशिश हो रही है। उनके अनुसार राष्टÑीय मत्स्य विकास बोर्ड ने प्रदेश के लिए सौ से भी अधिक ट्राउट की यूनिट मंजूर की हैं। अकेले मंडी जिले के लिए ही 40 यूनिटों को मंजूरी मिली है। इसके तहत जिले के उन स्थानों जैसे जंजैहली, गाडागुशैनी, जोगिंदरनगर, बालीचौकी आदि में निजी युवाओं को यह यूनिट मंजूर की जाएंगी। इसमें हर यूनिट ट्राउट उत्पादन के लिए डेढ़ मीटर गहरा, 15 मीटर लंबा व 2 मीटर चौड़ा तालाब तैयार करेगा। इसके लिए उसे 20 हजार रुपए दिए जाएंगे। तालाब तैयार हो जाने पर उसे 26 हजार रुपए ट्राउट के बीज खरीदने के लिए दिए जाएंगे। उनके अनुसार ट्राउट का उत्तम गुणवत्ता का बीज इस समय विभाग के पतली कूहल कुल्लू फार्म में उपलब्ध है। इससे पहले 28 फार्म निजी क्षेत्र में मंडी जिला के ठंडे क्षेत्रों में चल रहे हैं। यह फार्म राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत बनाए गए हैं। इसके अलावा बरोट में विभाग का अपना बड़ा ट्राउट फार्म है जहां पर ट्राउट मछली का उत्पादन भी होता है और उसका बीज भी तैयार किया जाता है।इस तरह अकेले मंडी में ही कई दर्जन परिवार इसी को अपना रोजगार बनाए हुए हैं और इसमें 40 परिवार और जुड़ने वाले हैं। यह उन लोगों के लिए एक अच्छा संकेत है जो ट्राउट मछली का स्वाद भी चखना चाहते हैं और साथ में अपने दिल को भी बचाए रखना चाहते हैं।

यदि ट्राउट का स्वाद चखना है तो आइए बरोट

यदि आपको पानी में बिचरती हुई ट्राउट मछलियां भी देखनी है, या फिर एंगलिंग करने का शौक है और साथ में सबसे अधिक स्वादिष्ट मानी जाने वाली ट्राउट मछली ताजा खानी है तो आ जाइए मंडी जिला के बरोट में। सौंदर्य से लबालब मंडी जिला का बरोट चौहार घाटी का मुयालय भी माना जाता है। अंग्रेजों द्वारा निर्मित शानन परियोजना का स्रोत स्थल भी बरोट में ही है। उहल नदी के किनारे बरोट में ट्राउट मछली का विभागीय फार्म भी है और कई निजी फार्म भी लोगों ने चला रखे हैं। बरोट में पंजाब बिजली बोर्ड, हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग व मत्स्य विभाग के विश्राम गृह भी हैं। पेर्इंग गेस्ट हाउस भी लोगों ने पर्यटन विभाग की योजना के तहत बना रखे हैं। खूबसूरती से सराबोर माहौल में ट्राउट मछली के स्वाद का आनंद मिले तो और क्या चाहिए। चंडीगढ़ दिल्ली से आएं तो मंडी होकर पठानकोट मार्ग पर बढ़ते हुए मंडी से 41 किलोमीटर दूरी पर है घटासनी। घटासनी से झंटीगरी होते हुए 25 किलोमीटर की दूरी पर बसा है उहल नदी किनारे बरोट। पठानकोट की ओर से आएं तो जोगिंदरगर से 15 किलोमीटर पर मंडी मार्ग पर है घटासनी और वहां से खूबसूरती को निहारते हुए पहुंच जाएं बरोट। किसी भी मौसम में जा सकते हैं यहां। सर्दियों में गर्म कपड़े लेकर जाना जरूरी रहेगा।

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