गुजरात के इस मुख्यमंत्री की पाकिस्तानी फौज ने कर दी थी हत्या, बाद में मांगी थी माफी, पढ़ें पूरी कहानी

गुजरात विधानसभा में अब एक महीने से भी कम समय रह गया है। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों ने चुनावी सभाओं के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी कैम्पेन छेड़ रखा है। कांग्रेस ने इसी के तहत ट्विटर पर हैशटैग नो योर लिगेसी नाम से एक प्रश्नमाला की सीरीज शुरू की है, जिसका मकसद राज्यवासियों को गुजरात के विकास में कांग्रेस के योगदान की याद ताजा कराना है। इसी सीरीज में कांग्रेस ने पिछले दिनों एक सवाल पूछा, गुजरात के कौन से पूर्व मुख्यमंत्री को भारत में पंचायती राज का वास्तुकार

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समाधान की राह

अयोध्या में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद ने देश के राजनीतिक माहौल में कैसी जटिलता पैदा कर दी है, छिपा नहीं है। हालांकि कानूनी प्रक्रिया से इतर लंबे समय से इस समस्या के हल के अलग-अलग प्रस्तावों पर बातचीत होती रही है, लेकिन संबंधित पक्षों के बीच आज तक कोई सहमति नहीं बन पाई है, जहां से आगे का रास्ता तैयार हो सके। ऐसी स्थिति में हाल के दिनों में शिया वक्फ बोर्ड की ओर से हुई पहलकदमी कुछ उम्मीद जगाती है। मंगलवार को बोर्ड ने कहा कि वह इस मामले

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भुखमरी का कलंक

वह बहुत अफसोसनाक है कि एक ऐसी समस्या की तरफ ध्यान खींचने के लिए अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति संस्थान (इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट- आइएफपीआरआइ) द्वारा एक रिपोर्ट के प्रकाशन की जरूरत पड़ती है, जो भारत में सदियों से मौजूद रही है और सभी विकासशील देशों में महामारी जैसी है- वह है भुखमरी। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत की आबादी के एक खासे हिस्से को साल में अनेक दिन भूखे रहना पड़ता है। सरकार को इस दुखद तथ्य को क्यों झुठलाना चाहिए, अगर उसने असुविधाजनक सच्चाई

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मोबाइल पर बात

मोबाइल फोन आज हमारी जिंदगी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। हम इसके बगैर रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। मगर विडंबना है कि यह जितना उपयोगी साबित हो रहा है, इसका दुरुपयोग उतना ही जानलेवा है। वाहन चलाते हुए मोबाइल फोन पर बात करना कितना घातक हो सकता है, इसका अंदाजा एक रिपोर्ट देखकर लगाया जा सकता है। सरकारी रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल दोपहिया वाहन चलाते हुए मोबाइल इस्तेमाल करने के कारण दो हजार से अधिक लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे। इसके अलावा

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आर्थिक मोर्चे पर जीत की उम्मीदें

आप महाभारत के पात्रों की तरह भीष्म ‘पितामह’ हों या युधिष्ठिर अथवा मौर्य काल के चाणक्य- अपनी सेना या जनता को क्या यह संदेश दे सकते हैं कि ‘सब कुछ चौपट हो गया। देश डूब रहा है। हमारे-आपके सामने बस अंधियारा रास्ता है?’ इसी तरह पं. जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी या अटल बिहारी वाजपेयी ने कठिनाइयों के दौर में भी क्या अपने साथियों, विरोधियों और जनता के बीच नई आशा जगाने का काम नहीं किया? अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रतिपक्ष में रहते हुए कांग्रेस सरकारों की नीतियों की

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कांग्रेस को संजीवनी

पंजाब के गुरदासपुर उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली शिकस्त से निश्चय ही कांग्रेस को बल मिला है। यह सीट अभिनेता से नेता बने विनोद खन्ना की मृत्यु के बाद खाली हुई थी। आमतौर पर ऐसी सीटों पर उसी पार्टी की जीत देखी जाती रही है, जिसका नेता पहले विजयी हुआ था। उस पार्टी के प्रति सहानुभूति लहर काम करती रही है। मगर इसके उलट गुरदासपुर में कांग्रेस के उम्मीदवार की भारी मतों से जीत हुई। हालांकि ऐसे उपचुनावों के नतीजों से पार्टी के जनाधार या फिर आने वाले

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राधे मां का ठुमका

स्च्छवता दिवस पर स्वच्छ-स्वच्छ लोग स्वच्छता के बारे में स्वच्छ-स्वच्छ अंग्रेजी में दिन भर स्वच्छ-स्वच्छ करते रहे। इस चक्कर में कई चैनल कुछ ज्यादा ही स्वच्छ-स्वच्छ करने लगे। स्वच्छ-स्वच्छ की कबड्डी खेलने लगे।  एनडीटीवी पर दिन भर अमिताभ स्वच्छता करते रहे। और हम सब डिटॉल में नहाते रहे। शाम तक इस दिव्य अभियान के लिए चैनल को पीएम की शाबाशी भी मिलती दिखी। एनडीटीवी को मिली तो डिटॉल को भी मिली! धन्य है डिटॉल कि उसके बिना कुछ स्वच्छ नहीं होता। डिटॉल को प्रणाम! बाइ द वे डिटॉल पर जीएसटी

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फरेब रचता सूचना तंत्र

पदेश शब्द में कर्ता के ओहदे के अनुसार अनुदेश, निर्देश, आदेश लक्षित होते रहते हैं। इन आचरणों से समाज को दिग्दर्शन देने वाली चार श्रेणियां हैं- संत, शिक्षक, शासक, राजनीतिज्ञ। व्यापारी इनके पोषक हैं, और संचार-तंत्र प्रचारक। यही छहों समाज के संचालक हैं। बाकी बचे लोग जनता, यानी उक्त छहों के हाथों की कठपुतली। हमारे देश में दिग्दर्शकों के सारे उपदेश/ निर्देश हम पर विज्ञापन द्वारा लागू होते हैं; जिसे हमारी संस्कृति की परवाह नहीं है। नई पीढ़ी की भाषिक संवेदना और चिंतन-प्रक्रिया को तो पहले ही कुंद कर लिया;

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पशुपालन से टूटता मोह

पशुओं की घटती संख्या का सर्वाधिक प्रतिकूल असर कृषि पर पड़ा है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि और पशुपालन का कितना विशेष महत्त्व है, यह इसी से समझा जा सकता है कि सकल घरेलू कृषि उत्पाद में पशुपालन का 28-30 प्रतिशत का सराहनीय योगदान है। इसमें भी दुग्ध एक ऐसा उत्पाद है जिसका योगदान सर्वाधिक है।  यह चिंताजनक है कि कृषि प्रधान देश भारत में पशुपालन के प्रति लोगों की अरुचि बढ़ती जा रही है। मवेशियों की संख्या में लगातार गिरावट हो रही है। आजादी के बाद से 1992 तक देश

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अपराध की पदचाप

दिल्ली हाइकोर्ट ने उचित ही दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया है कि वह महिलाओं का पीछा किए जाने की घटनाओं को गंभीरता से ले। यों तो इस निर्देश की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह कोई ऐसा मामला नहीं है जिसमें पुलिस को अपने कर्तव्य के बारे में अस्पष्टता या दुविधा हो। महिलाओं का पीछा करना 2013 में भारतीय दंड संहिता के तहत एक गंभीर अपराध मान लिया गया। इसकी पृष्ठभूमि से सब वाकिफ हैं। सोलह दिसंबर 2012 को दक्षिण दिल्ली में एक मेडिकल छात्रा के साथ चलती बस

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आॅस्कर की आस

आॅस्कर अब भी संभावना है। आॅस्कर कल भी एक संभावना थी। हमारे भारतीय, विशेषकर हिंदी फिल्मकारों के लिए वह दिवास्वप्न सरीखा है। एक ललक की तरह है जिसका रसीला आकर्षण कम होने का नाम ही नहीं लेता। अभी राजकुमार राव की फिल्म न्यूटन को आॅस्कर के लिए भेजा गया है, प्रचार इसी बात का किया गया प्रदर्शन के वक्त। क्या परीक्षा में बैठना और चयन हो जाने का सुख बराबर है? शायद नहीं। आइएएस कौन नहीं बनना चाहता? लेकिन उसकी परीक्षा में बैठने वाले सभी चयनित हो जाएं, ऐसा कहां

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दलित की दुनिया

संविधान से मिले समानता के अधिकारों, विशेष अवसर के प्रावधानों और राजनीतिक जागरूकता ने दलितों के अपने हितों के लिए एकजुट होने और लड़ने में अहम भूमिका निभाई है। प्रशासन तथा शैक्षिक संस्थानों से लेकर जीवन के अनेक क्षेत्रों में आज दलितों की उपस्थिति किसी हद तक हर तरफ दिखाई देती है। पर इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि आज भी दलितों की अधिकांश या बहुत बड़ी आबादी उस अपमान और उत्पीड़न को झेल रही है जिसे वह सदियों से झेलती आई है। यह सच्चाई रोज अनगिनत रूपों में

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लाल बहादुर शास्‍त्री जयंती: प्रधानमंत्री रहते हुए किश्‍तों पर खरीदी थी कार

देश की कई ऐसी हस्तियां हैं जिन्होंने एक छोटे से वर्ग से उठकर मेहनत करने के बाद देश का सबसे बड़ा पद हासिल किया था। ऐसे लोगों में दिवगंत पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का नाम भी शामिल है। आज यानि 2 अक्टूबर को शास्त्री  जी का जन्मदिन है। 1966 में जन्में शास्त्री ने जय जवान जय किसान का नारा दिया था। इतना ही नहीं 1965 में जब भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ था तो शास्त्री जी ने ही देश का बहुत ही अच्छे से नेतृत्व किया था। शास्त्री जब प्रधानमंत्री

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Happy Gandhi Jayanti: पढ़िए महात्मा गांधी का जीवन परिचय और उनके महत्वपूर्ण आंदोलनों के बारे में

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म दो अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। वो पुतलीबाई और करमचंद गांधी के तीन बेटों में सबसे छोटे थे। करमचंद गांधी कठियावाड़ रियासत के दीवान थे। महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा “सत्ये के साथ मेरे प्रयोग” में बताया है कि बालकाल में उनके जीवन पर परिवार और माँ के धार्मिक वातावरण और विचार का गहरा असर पड़ा था। राजा हरिश्चंद्र नाटक से बालक मोहनदास के मन में सत्यनिष्ठा के बीज पड़े। मोहनदास की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई स्थानीय स्कूलों में हुई। वो पहले पोरबंदर के प्राथमिक

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2014 का ग्रीष्म और अब

हंगामा या विवाद मैंने नहीं खड़ा किया है। दरअसल, मेरी शिकायत बस यह है कि जानकार व्यक्तियों ने (मेरी राय को किनारे रख दें) जो कहा या लिखा है उसका सरकार और अर्थव्यवस्था के उसके प्रबंधन पर कोई असर हुआ दिखता नहीं है। गलती सुधारने की कोई कोशिश नहीं की गई, उसका कोई संकेत तक नहीं दिया गया। इसके विपरीत, सरकार लगातार और हठपूर्वक यही दोहराती रही कि ‘सब कुछ ठीकठाक है’। नितांत अप्रत्याशित रूप से, यशवंत सिन्हा ने 27 सितंबर, 2017 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के मध्य-पेज पर एक लेख

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